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________________ आप्तवाणी-६ दादाश्री : प्रतिक्रमण किया तो फिर कोर्ट में केस नहीं चलेगा। 'भाई, तुझसे माफ़ी माँगते हैं।' ऐसा करके निकाल कर दिया। हमसे किसी को थोड़ा भी दुःख हो ऐसी वाणी निकलती ही नहीं। सामनेवाला तो भले ही कैसा भी पागलपन करे, उसे तो कुछ पड़ी ही नहीं है न? जिसे छूटना है, उसे ही पड़ी है न? इसलिए यदि दोष नहीं होते हों तो प्रतिक्रमण करने की ज़रूरत ही नहीं है। प्रतिक्रमण तो आपसे दोष हो जाए तब करना। सामनेवाला कहे कि 'साहब, दोष हों ही नहीं, इतनी अधिक मेरी शक्ति नहीं है। दोष तो हो जाते हैं।' तब तो हम कहेंगे कि, 'शक्ति नहीं है तो प्रतिक्रमण करना।' कोई जैसा-तैसा बोले, लेकिन उस घड़ी यदि हम जवाब दे दें, फिर वह जवाब भले ही कितना भी सुंदर हो, लेकिन थोड़ा सा भी स्पंदन फिंक जाएँ, तब भी नहीं चलेगा। सामनेवाले को सबकुछ ही बोलने की छूट है, वह स्वतंत्र है। अभी वे बच्चे ढेला फेंके तो उसमें वे स्वतंत्र नहीं है? पुलिसवाला जब तक रोके नहीं, तब तक स्वतंत्र ही है। सामनेवाला जीव तो, जो चाहे वह करे। टेढा चले और बैर रखे तब तो लाख जन्मों तक मोक्ष में नहीं जाने देगा! इसीलिए तो हम कहते हैं कि 'सावधान रहना। टेढ़ा मिले तो जैसे-तैसे करके, भाईसाहब करके भी छूट जाना! इस जगत् से छूटने जैसा है।' दुःख देने के प्रतिस्पंदन इस जगत् में आप किसी को दुःख दोगे, तो उसका प्रतिस्पंदन आप पर पड़े बगैर रहेगा नहीं। स्त्री-पुरुष के तलाक लेने के बाद पुरुष फिर से विवाह करे, फिर भी उस स्त्री को दु:ख रहे, तो उसके प्रतिस्पंदन उस पुरुष पर पड़े बगैर रहेंगे ही नहीं। और उसे वह हिसाब फिर से चुकाना पड़ेगा। प्रश्नकर्ता : ज़रा विस्तारपूर्वक समझाइए न! दादाश्री : यह क्या कहना चाहते हैं कि जब तक आपके निमित्त
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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