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________________ ४२ आप्तवाणी-६ उपाय में उपयोग किसलिए? इस जगत् में कोई ऐसा जन्मा ही नहीं कि जो आपका नाम दे ! और नाम देनेवाला होगा, उसके लिए आप लाखों उपाय करोगे तब भी आपसे कुछ हो नहीं पाएगा। इसीलिए कौन सी तरफ जाएँ अब ? लाख उपाय करने में पड़े रहें? नहीं, कुछ होगा नहीं । इसलिए सभी काम छोड़कर आत्मा की तरफ जाओ । प्रश्नकर्ता : यानी मूल बात ही आकर खड़ी हो गई । दादाश्री : हाँ, जो हो रहा है उसे 'देखते' रहो कि क्या हो रहा है? वह ‘पर' और ‘पराधीन' वस्तु है । और जो हो रहा है, वही न्याय हो रहा है और वही ‘व्यवस्थित' है। अच्छे लोगों को फाँसी पर चढ़ाते हैं, वह भी न्याय ही है और दुष्ट व्यक्ति छूट गया वह भी न्याय है। आपको वह देखना नहीं आता, कि अच्छा कौन और दुष्ट कौन ? आपको केस की जाँच करना नहीं आता है, आप अपनी भाषा में इसे केस कहते हो । निज स्पंदन से पाए परिभ्रमण प्रश्नकर्ता : तो फिर ‘सही है, गलत है', ऐसा अर्थ करना ही नहीं चाहिए, ऐसा हुआ न? दादाश्री : सही-गलत, वह सब बगैर समझ की बाते हैं। खुद की समझ से खुद न्यायाधीश बन बैठा है। किंचित्मात्र आपको कोई कुछ कर सके ऐसा है ही नहीं, यदि आप किसी को परेशान नहीं करो तो । उसकी मैं आपको गारन्टी लिख देता हूँ। यहाँ निरे साँप पड़े हों, फिर भी कोई आपको छुएगा नहीं, ऐसा गारन्टीवाला जगत् है। ये ज्ञानी किस तरह सहीसलामत और आनंद में रहते होंगे? क्योंकि ज्ञानी जगत् को जानकर बैठे हुए हैं कि 'कुछ भी होनेवाला नहीं है, कोई नाम देनेवाला नहीं है, मैं ही हूँ सब में, मैं ही हूँ, मैं ही हूँ, दूसरा कोई है ही नहीं ! '
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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