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________________ आप्तवाणी-६ २३ शास्त्रकारों ने क्या कहा है कि अहंकार एक ऐसा गुण है कि जो सभी लोगों को बिल्कुल अंधा बना देता है। भाईयों में भी दुश्मनी हो जाती है। सगा भाई कब बरबाद हो जाए ऐसा सोचता है! अरे, सगा बाप भी, बेटे को ऐसा आशीर्वाद देता है कि कब यह बरबाद हो जाए! अहंकार क्या नुकसान नहीं करता? यानी हमें अहंकार को पहचान लेना चाहिए कि 'यह अपना कौन है?' प्रश्नकर्ता : लेकिन हमारा काम करने के लिए हमें अहंकार तो चाहिए ही न? दादाश्री : वह काम करने का अहंकार होता ही है। उसके लिए कौन मना करता है? लेकिन उस अहंकार को जानना चाहिए कि अहंकार में ऐसे गुण हैं। ताकि हमें उस पर प्रेम नहीं रहे, आसक्ति नहीं रहे। प्रश्नकर्ता : हम चाहे जितना करें, परंतु सामनेवाला नहीं सुधरे तो क्या करें? दादाश्री : खुद सुधरे नहीं और लोगों को सुधारने गए, उससे लोग बल्कि बिगड़ गए। सुधारने जाएँ कि बिगड़ते हैं। खुद ही बिगड़ा हुआ हो तो क्या होगा? खुद का सुधरना सब से आसान है ! हम नहीं सुधरे हों और दूसरों को सुधारने जाएँ, वह मीनिंगलेस है। तब तक अपने शब्द भी वापस आएँगे। आप कहो कि, 'ऐसा मत करना।' तब सामनेवाला कहेगा कि, 'जाओ, हम तो ऐसा ही करेंगे!' यह तो सामनेवाला बल्कि अधिक उल्टा चला! इसमें अहंकार की ज़रूरत ही नहीं है। अहंकार से सामनेवाले को डरा-धमकाकर काम करवाने जाएँ, तो सामनेवाला अधिक बिगड़ेगा। जिसमें अहंकार नहीं है, वहाँ उसके प्रति हमेशा सभी सिन्सियर रहते हैं और मॉरेलिटी होती है। हमारा अहंकार नहीं होना चाहिए। अहंकार सभी को चुभता है। छोटे बच्चे को भी ज़रा सा 'बेअक्ल, मूर्ख, गधा', यदि ऐसा कहा तो वह भी
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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