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________________ आप्तवाणी-६ काल और भाव करवाते हैं । ज्ञानी से ज्ञान मिले तो अहंकार जाता है, और अहंकार गया तो सारी प्रतिष्ठा बंद हो गई ! फिर वह कहाँ जाए? मोक्ष में ! प्रश्नकर्ता : अहंकार, वह भी द्रव्य - क्षेत्र - काल और भाव के अधीन है? ११ दादाश्री : हाँ, इसलिए वह प्रतिष्ठा करता है। दिखने में ऐसा लगता है कि यह प्रतिष्ठा अहंकार खुद कर रहा है, परंतु संयोग करवाते हैं। उससे प्रतिष्ठा खड़ी हो जाती है । अब प्रतिष्ठा में से फिर से संयोग खड़े होते हैं, वे वापस प्रतिष्ठा करवाते हैं । अर्थात् खुद इसमें कुछ भी करता ही नहीं! इसलिए हम उसे साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स कहते हैं सबकुछ संयोग करवाते हैं और खुद मानता है कि, 'मैंने किया ।' अब 'मैंने किया' वैसी मान्यता भी संयोग करवाते हैं । तब कोई पूछे कि इसे अहंकार कहेंगे या नहीं? तब कहें, "हाँ, अहंकार ही न? क्योंकि करता है कोई दूसरा और मानता है कि 'मैंने किया'।” प्रश्नकर्ता : अहंकार भी संयोगों के अधीन होता है ? दादाश्री : हाँ, सच्ची बात है । यह सारा संयोग करवाते हैं। अहंकार भी संयोग करवाते हैं, फिर भी वह मानता है कि, 'मैंने ही किया ।' उससे नई प्रतिष्ठा खड़ी होती है । हम लोगों को तो 'मैंने किया' ऐसा अपनी ‘बिलीफ़' में नहीं होता। हम लोग ऐसा समझते हैं कि 'व्यवस्थित' करवाता है, इसलिए प्रतिष्ठा होनी बंद हो गई। जो चित्रित किया हुआ है वह भव तो आएगा परंतु नया चित्रण बंद हो गया । हम यात्रा में गए, वे पहले के चित्रित किए हुए भाव थे सारे । जहाँ-जहाँ के थे, वहाँ-वहाँ सभी जगह जा आए। T प्रश्नकर्ता : बुद्धि का आशय बदलता है या नहीं? दादाश्री : आसपास पहरा हो, उसके आधार पर बुद्धि का आशय होता है। चारों तरफ पुलिसवाले इकट्ठे हो जाएँ, उस घड़ी अंदर भय बैठ जाता है तो बुद्धि का आशय कहेगा कि नहीं, अब चोरी नहीं करनी है उसके अनुसार सारा परिवर्तन हो जाता है। I
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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