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________________ २३८ आप्तवाणी-६ प्रश्नकर्ता : हाँ, है। दादाश्री : और यह भट्ठी तो थी ही न? कहाँ नहीं थी? यह जूठन तो है ही न? प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा होने के बाद उसे दबाव क्यों घेर लेते होंगे? दादाश्री : यह जो शुद्धात्मा प्राप्त हुआ है, वह आपके सभी कर्मों के निकाल करने के बाद प्राप्त हो तो कुछ भी अंदर पैठेगा नहीं। यह तो आपके बिना खपाए हुए कर्म अभी मौजूद है और यह प्राप्त हो गया है। मैं क्या कहता हूँ कि ऐसा प्राप्त होने के बाद इन कर्मों का निकाल कर दो झटपट। यह सब उधार चुका दो, नहीं तो आत्मा, शुद्धात्मा प्राप्त हुए बिना उधार चुक सके ऐसा कोई रास्ता था ही नहीं, यानी यह तो दिवालिया में से साहूकार होना है, यह उधार बहुत सारा है। और अब यदि भटक गए न, तो ८१,००० वर्षों तक भटकेंगे। इसलिए हम अभी उठा लेते हैं, तो जिस-जिसको यह योग प्राप्त हो जाए, वे सब लोग काम निकाल लें, नहीं तो स्लिप होने का काल है, फिसलनेवाला काल है। आपके उधार अपार है, उनके बीच आपको जागृत कर दिया। आपको जागृति बरतती है या नहीं? प्रश्नकर्ता : बरतती है। दादाश्री : उस जागृति के उच्चतम शिखर पर बैठकर देखना चाहिए, अंदर कुछ भी हिला हो तो पता चल जाएगा कि अंदर क्या हिला? और वह अपने हित में है या अपना विरोधी है, वह तुरंत समझ जाना चाहिए। पूरा जगत् खुली आँखों से सो रहा है, क्योंकि वह किसमें जागृत है? पैसों में, विषय में जागृत है। पूरा जगत् ताल बैठा-बैठाकर थक गया है, कुछ भी नहीं हो पाया। इसलिए मैं आपको क्या कहता हूँ कि सबकुछ 'व्यवस्थित' है, यानी कि आपका हिसाब है। उसे कोई बदल नहीं सकता। इसीलिए मेल बैठाने मत जाना। आप अपना काम करते रहो। 'व्यवस्थित' आपको सभी तरह की सहायता देता रहेगा।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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