SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी- -६ करता है? तब हम समझ जाते हैं कि इसे गलगलिया हो गया है। कुछ न कुछ समझाकर वह दुकान में पीछे से घुस जाता है और ज़रा सी गटक लेता है, तभी छोड़ता है ! २१३ इस अटकण के बारे में आपको समझ में आया न? वह अटकण हमें मूर्छित कर देती है। इसलिए ज्ञान - दर्शन सभी कुछ उतने टाइम तक, पाँच-दस मिनिट तक पूरा मूर्छित कर देती है। जोखमी, निकाचित कर्म या अटकण? प्रश्नकर्ता : जिसे निकाचित कर्म कहते हैं, वही अटकण है न? दादाश्री : अटकण तो निकाचित कर्म से भी बहुत भारी होती है। निकाचित कर्म तो छोटा शब्द है । निकाचित कर्म यानी कि उस कर्म को भोगना ही पड़ता है। अटकण को भोगना ही पड़ता है, उतना ही नहीं परंतु आगे के लिए भी भोगने का बीज डाल देती है। ज्ञान हो फिर भी निकाचित कर्म को तो भोगे बिना चारा नहीं है । आपकी कोई इच्छा नहीं होती भोगने की, फिर भी भोगना ही पड़ता है। यानी इन निकाचित कर्म में हर्ज नहीं है। निकाचित कर्म तो एक प्रकार का दंड है हमारे लिए । जितना दंड होना है वह हो जाता है । परंतु इस अटकण की तो बहुत परेशानी है। प्रश्नकर्ता : वेदान्त में क्रियमाण कहते हैं, वही है न? दादाश्री : क्रियमाण नहीं, कुछ कर्म ऐसे हैं कि सोचने मात्र से कर्म छूट जाते हैं, ध्यान से कर्म छूट जाते हैं और कुछ कर्म ऐसे हैं कि नहीं भोगना हो, इच्छा नहीं हो फिर भी भोगने ही पड़ते हैं ! उन्हें निकाचित कर्म कहा जाता है । उन्हें भारी कर्म कहा जाता है । और यह अटकण तो ऐसी है कि वह दूसरा तूफ़ान खड़ा कर देती है ! यानी इस अटकण का तो बहुत सोच-समझकर रास्ता निकालना चाहिए। इसलिए ये लड़के छोटी उम्र में ही पुरुषार्थ में लग पड़े हैं कि किस तरह से यह अटकण टूटे ?
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy