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________________ आप्तवाणी-६ १८९ हम सब 'शुद्धात्मा' के तौर पर ज्ञानी हैं और व्यवहारिक तौर पर इस तरह से है। असमाधानों में एडजस्टमेन्ट या प्रतिक्रमण? प्रश्नकर्ता : कोई व्यक्ति आज्ञापूर्वक कहे कि आप ऐसा करो, और यदि उस व्यक्ति पर विश्वास नहीं हो न, तो वहाँ प्रकृति 'एडजस्ट' नहीं होती, तब क्या करें? दादाश्री : विश्वास के बिना तो इस ज़मीन पर दो पैर भी नहीं पड़ सकते! 'यह ज़मीन पोली है' ऐसा जान जाए, तो फिर कोई वहाँ पर जाएगा ही नहीं न! इस स्टीमर में छेद है, ऐसा जानने पर कोई उसमें बैठेगा? प्रश्नकर्ता : परंतु ज्ञान के बाद जो सहजता रहनी चाहिए और सामनेवाले के साथ एडजस्ट होना चाहिए। यदि वैसा नहीं हो पाए तो क्या करें? दादाश्री : वैसा हो तो उसे देखना'! 'चंदूभाई' क्या करते हैं, 'हमें' उसे सिर्फ देखना है। ऐसा अपना ज्ञान कहता है। प्रश्नकर्ता : हम सामनेवाले के साथ 'एडजस्ट' नहीं हों, तो वह अपनी आड़ाई (अहंकार का टेढ़ापन) कहलाएगी? दादाश्री : नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। जैसा सामनेवाले का हिसाब हो उसके अनुसार सब होता है। प्रश्नकर्ता : परंतु सामनेवाले मनुष्य को दुःख तो होगा न कि यह मेरा मान नहीं रखता। दादाश्री : तो उसका आपको 'चंदूभाई' के पास से प्रतिक्रमण करवाना चाहिए, उसमें और कोई परेशानी नहीं है। इन सब्जियों में कितनी जातियाँ हैं? प्रश्नकर्ता : बहुत सारी।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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