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________________ १७२ आप्तवाणी-६ दादाश्री : मेरा कहना है कि डॉक्टर को ही ब्लड प्रेशर होता है न! 'वह किस आधार पर खाता है' वह आप जानते नहीं हो । आप तो एक बार कहकर देखो कि 'डॉक्टर ने आपको मिर्च खाने के लिए मना किया है'। फिर यदि आपका प्रभाव पड़ा तो ठीक और नहीं पड़ा तो भी ठीक। आपका भी प्रभाव नहीं पड़ेगा और डॉक्टर का भी प्रभाव नहीं पड़ेगा । प्रश्नकर्ता : हम मिर्च खाते रहें और दूसरे की मिर्च बंद करवाएँ तो उसका प्रभाव नहीं पड़ेगा न ? दादाश्री : वैसा मैं करवाता ही नहीं। मुझे जितना त्याग बरतता है, उतना ही त्याग मैं आपसे करवाता हूँ, और वह भी आपकी इच्छा हो तब, नहीं तो मैं कहता हूँ कि शादी कर ले भाई । ले शादी कर ! हम कच-कच करें कि अचार मत खाना, मिर्ची मत खाना। तो वे मन में चिढ़ते रहते हैं कि यह कहाँ से सामने आया ? आपके मन में कभी ऐसा होता है कि मैं नहीं होऊँगा तो क्या होगा? तो फिर 'हम नहीं ही हैं' ऐसा मान लो ! बिना बात के इगोइज़म करने के बजाय ‘मिर्ची मत खाना' डॉक्टर का वह ज्ञान हमें हाज़िर करना चाहिए। परंतु उसे स्वीकार करना या नहीं करना, वह तो उसकी मर्ज़ी की बात है। मैंने किसी से कहा हो कि, ऐसा करना । तब वह कुछ अलग ही करता है। तब मैं उससे कहता हूँ कि, 'ऐसा करने से भला क्या फायदा होगा?' तब वह कहता है कि अब से नहीं करूँगा । उसके बदले मैं यदि ऐसा कहूँ, 'तू क्यों करता है? तू ऐसा है और तू वैसा है।' तब वह ढँकेगा, ओपन नहीं करेगा। प्रश्नकर्ता : ऐसी कुशलता क्या एकदम से आ जाती है?
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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