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________________ १६८ आप्तवाणी-६ उसमें प्रिकॉशन लेनेवाले आप कौन? क्या मनुष्य प्रिकॉशन ले सकता है? उसमें संडास जाने की स्वतंत्र शक्ति भी नहीं, वहाँ पर? पूरा जगत् प्रिकॉशन लेता है, फिर भी क्या एक्सिडेन्ट नहीं होते? जहाँ प्रिकॉशन नहीं होते, वहाँ क्या एक्सिडेन्ट नहीं होते! प्रिकॉशन लेना, वह एक प्रकार की चंचलता है! ज़रूरत से ज़्यादा चंचलता है। उसकी ज़रूरत ही नहीं है। जगत् अपने आप सहज रूप से चलता ही रहता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन सावधानी कर्ताभाव से नहीं, परंतु ऑटोमेटिक तो होगी न? दादाश्री : वह तो अपने आप हो ही जाती है। प्रश्नकर्ता : कर्ता नहीं, परंतु विचार सहज रूप से आएँ तो फिर विवेकबुद्धि से करना चाहिए, ऐसा? दादाश्री : नहीं, अपने आप ही सब हो जाता है। आपको' 'देखते' रहना है कि क्या होता है? अपने आप सबकुछ ही हो जाता है! अब बीच में आप कौन रहे, वह मुझे बताओ? आप 'शुद्धात्मा' हो या 'चंदूभाई' हो? प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं कि बीच में आप कौन? तो बीच में मन तो है न? दादाश्री : मन के लिए हमने कहाँ मना किया है? मन में तो अपने आप ही कुदरती रूप से विचार आते रहते हैं! और कभी विचार नहीं भी आते! ऐसा है. मन तो अंतिम अवतार में भी प्रतिक्षण चलता रहता है, सिर्फ इतना ही कि तब मन गाँठवाला नहीं होता। जैसे उदय आएँ, वैसा होता है! ज्ञान के बाद आप 'शुद्धात्मा' हो और व्यवहार से 'चंदूभाई' हो! अब 'मैं चंदूभाई हूँ, मैं इसका मामा हूँ, इसका चाचा हूँ', उसे व्यवहार में विकल्प कहा जाता है, परंतु वास्तव में यह विकल्प नहीं है। यह तो डिस्चार्ज स्वरूप है। यदि खुद मान बैठे कि 'मैं ही चंदूभाई हूँ', तो वह विकल्प कहलाएगा। 'ज्ञान' के बाद 'मैं शुद्धात्मा हूँ', तो वह निर्विकल्प हो जाता है।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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