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________________ [२२] आपको दुःख है ही कहाँ? इस संसार में आपको दुःख है ही कहाँ? दुःख तो अस्पताल में है, जहाँ पैर ऊँचा बाँधा हुआ है! भयंकर जले हुए लोग हैं, उन्हें दुःख है। आप पर दुःख ही क्या पड़ा है? यों ही शोर मचाते रहते हो, बिना बात के! इन्हें तो छह-छह महीनों की जेल में डाल देना चाहिए! आप अच्छी चीज़ को खराब कहते हो, तो खराब को क्या कहोगे? अस्पताल में जहाँ दुःख है, उसे दु:ख कहो और दुःख नहीं हो उसे दु:ख कैसे कहा जाए? हम हमारी जिंदगी में कभी भी, 'दु:ख है', ऐसा नहीं बोले हैं। ऐसा तो बोलते होंगे? आप क्या मूर्ख आदमी हैं? दो आने, चार आने, आठ आने, बारह आने, सभी एक जैसा? दु:ख तो अस्पतालवालों को है। इन बंगलों में, पलंग में सोए हुए हैं, उन्हें नहीं है। पैर ऊपर बांधे हुए हों, जले हुए हों, उन्हें आप देखकर आओ तो खुद को दुःख नहीं है, ऐसा आभास होगा। कुदरत के लिए आप को आनंद होगा कि 'ओहोहो! कुदरत ने कितनी अच्छी प्लेस (स्थान) मुझे दी है! यह तो लोगों को भान ही नहीं है न? इन्होंने तो अच्छे की भी बुराई की और कमज़ोर की भी बुराई की! बुराईयाँ करना, सिर्फ यही काम है। इसे मानवता कैसे कहेंगे? किसे तकलीफ कहना, उसकी लिमिट होनी चाहिए या नहीं? 'आज मुझे भूख नहीं लगी, आज मुझे यह तकलीफ है', यह तो कैसी 'मेडनेस'? मेरे पैर में फ्रेक्चर हो गया था, तब कुछ लोग पैर में लटकाया हुआ वज़न देखकर कहते थे, 'आपको भगवान ने ऐसा दु:ख किसलिए दिया होगा? अब, भगवान तो हैं ही नहीं!'
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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