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________________ १५४ आप्तवाणी-६ दादाश्री : हाँ, उसे आपने ही चीकणी की है, इसलिए आपको उसकी चिपचिपाहट निकालनी है, और भोले मनुष्य की सभी फाइलें भोली होती हैं। प्रश्नकर्ता : चीकणी फाइलोंवाले लुच्चे होते हैं? दादाश्री : नहीं, उन्हें लुच्चा नहीं कह सकते। अहंकार की वजह से गाढ़ करते रहते हैं। और भोले मनुष्य 'ठीक है फिर', कहकर छोड़ देते हैं। उसे अहम् की बिल्कुल भी नहीं पड़ी होती। वाणी में मधुरता, कॉज़ेज़ का परिणाम दोष ही सारे वाणी के हैं। वाणी सुधरे नहीं, मीठी नहीं हो तो आगे जाकर फल नहीं देती। देह के दोष तो ठीक हैं, उन्हें भगवान ने 'लेट गो' किया है। परंतु वाणी तो दूसरों को चोट पहुँचाती है न? वाणी में मधुरता आई कि गाड़ी चली। वह मधुर होते-होते अंतिम अवतार में इतनी मधुर हो जाती है कि उसके साथ किसी भी 'फ्रूट' की तुलना नहीं की जा सकती, इतनी मिठासवाली होती है! और कुछ लोग तो बोलें, तब ऐसा लगता है कि भैंसें रम्भा रही हों! यह भी वाणी है और तीर्थंकर साहबों की भी वाणी है! प्रश्नकर्ता : यदि भाव ऐसे किए हों कि ऐसी स्यादवाद वाणी प्राप्त हो, ऐसी मधुर वाणी प्राप्त हो, तो वह भाव ही वैसी वाणी का रिकॉर्ड तैयार करेगा न? दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है। वाणी तो, भाव से हमें ऐसी माँग हर रोज़ करनी चाहिए कि मेरी वाणी से किसी को भी दुःख नहीं हो और सुख हो। लेकिन सिर्फ माँग करने से ही कुछ नहीं हो पाएगा। वैसी वाणी उत्पन्न हो, उसके कॉज़ेज़ करने पड़ेंगे। तब उससे वैसा फल आएगा। वाणी फल है। सुख देनेवाली वाणी निकले, तब वह मीठी होती जाती है और दःख देनेवाली वाणी कडवी होती जाती है। फिर भैंसा रम्भाए और वह रम्भाए, दोनों एक जैसा लगता है!
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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