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________________ आप्तवाणी-६ कर्म का उदय भोग रहे हैं । तू बिना बात बीच में क्यों झंझट कर रहा है? चोरी करनेवाले चोरी करते हैं, वे भी उनके कर्म का उदय भोग रहे हैं । पूरा जगत् अपने-अपने कर्म का ही वेदन कर रहा है ! १५० हमने आपको जब से देखा, जब से पहचाना, तब से हमारा तो कभी भी अभिप्राय नहीं बदलता । फिर आप ऐसे धूमो या वैसे घूमो, वह सब आपके कर्म के उदय के अधीन है। जब तक खुद के दोष नहीं दिखते और दूसरों के ही दोष दिखते रहते हैं, जब तक वैसी दृष्टि है तब तक संसार खड़ा रहेगा । और जब औरों का एक भी दोष नहीं दिखेगा और खुद के सभी दोष दिखेंगे, तब समझना कि मोक्ष में जाने की तैयारी हुई, बस इतना ही दृष्टिफेर है ! दूसरों के दोष दिखना, वह हमारी ही दृष्टि की भूल है। क्योंकि ये सभी जीव खुद की सत्ता से नहीं हैं, परसत्ता से है। खुद के कर्म के अधीन है । निरंतर कर्म ही भुगत रहे हैं ! उसमें किसी का दोष होता ही नहीं है। जिसे यह समझ में आ गया, वह मोक्ष में जाएगा। नहीं तो वकीलों जैसा समझ में आया, तो यहीं पर रहेगा । यहाँ का न्याय तोलेगा तो यहीं पर रहेगा ।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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