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________________ १३२ आप्तवाणी-६ सेठ की दुकान का दिवालिया निकलनेवाला हो, फिर भी कोई भिक्षुक आए, तो सेठानी उसे साड़ी वगैरह देती है, और यह सेठ एक दमड़ी भी नहीं देता। सेठ बेचारे को अंदर होता रहता है कि अब क्या होगा? क्या होगा? जब कि सेठानी तो आराम से साड़ी-वाड़ी देती है, वह सहज प्रकृति कहलाती है। अंदर जैसा विचार आया वैसा कर देती है। सेठ को तो अंदर विचार आए, लाओ दो हज़ार रुपये धर्मदान दें, तो तुरंत ही वापस मन में कहेगा, अब दिवालिया निकल रहा है, क्या दें? छोड़ो न अब! वह बात को उड़ा देता है! सहज तो, मन में जैसा विचार आए वैसा ही करता है और वैसा नहीं करे तो भी (प्रतिष्ठित) आत्मा की दख़ल नहीं रहती, तो वह सहज है! यह 'ज्ञान' दिया हुआ हो, उसे गाड़ी में चढ़ते समय कहाँ पर जगह है और कहाँ नहीं, ऐसा विचार आता है। वहाँ सहज नहीं रहा जाता। अंदर खुद दख़ल करता है। उसके बावजूद भी इस 'ज्ञान' में ही रहो, 'आज्ञा' में ही रहो, तो प्रकृति सहज हो जाएगी। फिर चाहे कैसा भी होगा फिर भी, लोगों को सौ गालियाँ देता होगा फिर भी वह प्रकृति सहज है, क्योंकि हमारी आज्ञा में रहा इसलिए खुद की दख़ल मिट गई और तभी से प्रकृति सहज होने लग गई। 'अपनी' यह सामायिक करते हो, उस समय भी प्रकृति बिल्कुल सहज कहलाती है! ___ क्रमिक मार्ग में ठेठ तक सहज दशा नहीं हो पाती। वहाँ तो, 'यह त्याग करूँ, यह त्याग करूँ, ऐसा करना चाहिए, ऐसा नहीं करना चाहिए।' उसकी परेशानी अंत तक रहती है! सहज → असहज → सहज हिन्दुस्तान के लोग असहज हैं, इसलिए चिंता अधिक है। क्रोधमान-माया-लोभ बढ़ गए, इसलिए चिंता बढ़ गई। नहीं तो कोई मोक्ष में जाए, ऐसे नहीं हैं। और कहेंगे, हमें कहीं मोक्ष में नहीं आना है, यहाँ बहुत अच्छा है।' इन फ़ॉरेन के लोगों से कहें कि, 'चलो मोक्ष में।' तब वे कहेंगे, 'नहीं, नहीं, हमें मोक्ष की कोई ज़रूरत नहीं है!'
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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