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________________ आप्तवाणी- -६ दादाश्री : हाँ, 'व्यवस्थित' के अधीन है। आत्मा के अधीन नहीं, ऐसा हम कहना चाहते हैं । 'पर' अर्थात् तेरा नहीं है और 'पराधीन' अर्थात् तेरे हाथ का खेल नहीं है । तेरा नक्की किया हुआ इसमें नहीं हो सकेगा। 1 १२७ किसीने गाली दी, तो वह पराधीन है । हम ऐसा कहते हैं, कि रिकॉर्ड है, उसका क्या कारण है कि सामनेवाले को गाली देने की शक्ति ही नहीं । वह तो 'व्यवस्थित' के ताबे में है ! यानी वास्तव में यह 'रिकार्ड' ही है, और ऐसा समझ लो, फिर आपको क्यों गुस्सा आएगा क्या? ' रिकार्ड' बोल रहा हो कि 'चंदूभाई खराब है, चंदूभाई खराब है', तो उससे आपको गुस्सा आएगा? यह तो मन में ऐसा लगता है कि, यह 'उसने' बोला इसलिए गुस्सा आता है ! वास्तव में 'वह' बोलता ही नहीं है । वह रिकार्ड बोलता है और वह तो, जो आपका है वही आपको वापस दे रहा है। कुदरत की कितनी अच्छी व्यवस्था है ! यह बहुत ही समझने जैसा है। अक्रम विज्ञान ने तो सभी बहुत अच्छे स्पष्टीकरण दे दिये हैं। 'व्यवस्थित' की तो यह नयी ही बात है ! अकर्म दशा का विज्ञान प्रश्नकर्ता : कोई भी गलत काम करें, तब कर्म तो बँधेंगे ही, ऐसा मैं मानता हूँ। दादाश्री : तो अच्छे कर्मों का बंधन नहीं है ? प्रश्नकर्ता : अच्छे और बुरे, दोनों से कर्म बँधते हैं न? दादाश्री : अरे ! अभी भी आप कर्म बाँध रहे हो ! अभी आप बहुत ऊँचा पुण्य का कर्म बाँध रहे हो ! परंतु कर्म कभी भी बँधे ही नहीं, ऐसा दिन नहीं आता न? इसका क्या कारण होगा? प्रश्नकर्ता : कुछ न कुछ तो कर ही रहे होंगे न, अच्छा या बुरा? दादाश्री : हाँ, परंतु कर्म नहीं बँधे, ऐसा रास्ता नहीं होगा? भगवान महावीर किस तरह कर्म बाँधे बगैर छूटे होंगे ? यह देह है, तो कर्म तो
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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