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________________ [१७] कर्मफल-लोकभाषा में, ज्ञानी की भाषा में प्रश्नकर्ता : सबकुछ यहीं के यहीं भुगतना है, ऐसा कहते हैं। वह क्या है? दादाश्री : हाँ, भुगतना यहीं के यहीं है, परंतु वह इस जगत् की भाषा में। अलौकिक भाषा में इसका क्या अर्थ है? पिछले जन्म में अहंकार का, मान का कर्म बँधा हो, तो इस जन्म में उनके सारे बिल्डिंग बनते हैं, तो फिर उससे वह मानी बनता है। किस लिए मानी बनता है? कर्म के हिसाब से वह मानी बनता है। अब मानी बना, उसे जगत् के लोग क्या कहते हैं कि, 'यह कर्म बाँध रहा है, यह ऐसा मान लेकर घूमता रहता है।' जगत् के लोग इसे कर्म कहते हैं। जब कि भगवान की भाषा में यह कर्म का फल आया है। फल अर्थात् यदि मान नहीं करना हो, फिर भी करना ही पड़ता है, हो ही जाता है। __ और जगत के लोग जिसे कहते हैं कि यह क्रोध करता है, मान करता है, अहंकार करता है, अब उसका फल यहीं पर भुगतना पड़ता है। मान का फल यहीं पर क्या आता है कि अपकीर्ति फैलती हैं, अपयश फैलता है। वह यहीं पर भुगतना पड़ता है। यह मान करें, उस समय यदि मन में ऐसा रहे कि यह गलत हो रहा है, ऐसा नहीं होना चाहिए, हमें निर्मानी बनने की ज़रूरत है, ऐसे भाव हों तो वह नया कर्म बाँधता है। उसके कारण अगले जन्म में फिर वह निर्मानी बनता है। कर्म कि थ्योरी ऐसी है! गलत होते समय भीतर भाव बदल जाएँ तो नया कर्म उस तरह का बँधता है। और गलत करे और ऊपर से खुश
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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