SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-६ के भी हेड में क्रेक पड़ जाता है। वे तृतियम् ही बोलते हैं। हम पूछे कुछ और वे बोलते हैं कुछ और? इसलिए इन गुणों की कोई क़ीमत ही नहीं है। बासमती के सुंदर चावल हों, परंतु उनका दूसरे दिन क्या होता है? सड़ जाते हैं ! तो ये पौद्गलिक गुण सड़ जाएँगे। सेठ बहुत दयालु दिखते हैं, परंतु किसी दिन नौकर पर चिढ़ जाएँ, तब निर्दयता निकलती है। वह अपने से देखी नहीं जाती। अतः यह समझने जैसी बात है! ज्ञानी की विराधना का मतलब ही... प्रश्नकर्ता : पूर्वभव में यदि ज्ञानी की विराधना की हो तो उसका परिणाम क्या आता है? ये सब लक्षण यदि मुझमें हैं, तो उसके लिए क्षमा दी जा सकती है या वह भोगना ही पड़ेगा? दादाश्री : ज्ञानी तो खुद ही उसका सारा इलाज कर देते हैं। ज्ञानी तो करुणावाले होते हैं। इसलिए वे, जितना उनकी सत्ता में हो उतनी दवाई तो पिला ही देते हैं सभी को। परंतु उनकी सत्ता से बाहर की वस्तु तो भोगनी ही पड़ती है, क्योंकि विसर्जन कुदरत के हाथ में है। प्रश्नकर्ता : विराधना के लिए पछतावा होता रहता है। दादाश्री : उसका पछतावा होता है, दु:ख का वेदन करता है, भोगना पड़ता है, असमाधि रहती है, उसका अंत ही नहीं आता। वह छोडती ही नहीं न? प्रश्नकर्ता : उसका अंत ही नहीं आएगा, क्या ऐसा है दादा? दादाश्री : अंत नहीं आएगा, उसका अर्थ यह है कि वह कहीं दोचार दिनों में खत्म हो जाए, ऐसी चीज़ नहीं होती। किसी मनुष्य की इस कमरे जितनी टंकी होती है और किसी की पूरी बिल्डिंग जितनी टंकी होती है। उसमें क्या फर्क नहीं होगा? प्रश्नकर्ता : परंतु दादा, वह खाली तो हो ही जाएगा न?
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy