SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-६ दादाश्री : मन में जो विचार आते हैं, उनमें आप तन्मयाकार हो जाते हो, वह आत्मा की शक्ति नहीं है। वह तो भीतर निर्बलता है, उसके कारण यह तन्मयाकार हो जाता है। अज्ञानता के कारण तन्मयाकार होता है। यह मूल आत्मा वैसा नहीं है। वह तो अनंत शक्तिवाला, अनंत ज्ञानवाला है। परंतु यह जो आपका माना हुआ आत्मा है, उसके कारण यह सब झंझट है। यानी कि विचार के साथ तन्मयाकार हुए, तभी से नया चार्ज होने लगेगा। जिन्हें स्वरूप का ज्ञान है, वे तो जो विचार आते हैं, उनमें तन्मयाकार नहीं होंगे। इसलिए जैसे ही उसका टाइम होगा कि मन डिस्चार्ज हो जाएगा। फिर नया चार्ज नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : परंतु इसमें तो ओटोमेटिक तन्मयाकार हो जाते हैं। दादाश्री : हाँ, ओटोमेटिक ही हो जाते हैं, उसी को भ्रांति कहते हैं न! इसमें खुद का कोई पुरुषार्थ है ही नहीं। जब तक खुद पुरुष नहीं हुआ, तब तक पुरुषार्थ है ही नहीं। यह तो प्रकृति आपको ज़बरदस्ती नचाती है। प्रश्नकर्ता : शरीर और मन के बीच क्या संबंध है? दादाश्री : शरीर का सारा ही नियंत्रण, इन पाँच इन्द्रियों का, सभी का नियंत्रण मन के हाथ में है। मन आँख से कहे कि यह तेरे देखने जैसा नहीं है, तब फिर आँखें तुरंत देख लेती हैं, और मन मना करे तो आँखें देख रही होंगी, फिर भी बंद हो जाएगी। यानी कि शरीर पर सारा ही नियंत्रण मन का है। प्रश्नकर्ता : बहुत बार मन अंदर से कहता है कि नहीं देखना है, फिर भी देख लेते हैं, वह क्या है? दादाश्री : देख लेता है वह तो उसका मूल स्वभाव है, परंतु नहीं देखना है वैसा नक्की करे, तो फिर से देखेगा ही नहीं। देखना तो आँखों का स्वभाव है। इन्द्रियों के स्वभाव के अनुसार इन्द्रियाँ तो ललचाती ही रहती हैं, परंतु मन के मना करने पर फिर वे देखेंगी ही नहीं। अब 'मन के ऊपर किसका नियंत्रण है' वह देखना है। आपके मन पर किसका नियंत्रण है?
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy