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________________ आप्तवाणी-६ दादाश्री : किसका अधिक ज़ोर है, वह देख लेना। प्रश्नकर्ता : यहाँ बैठे रहने के लिए ही ज़ोर देता है! दादाश्री : तो फिर यहाँ के लिए जोर देता है तो यहाँ बैठे रहना। 'ये बैठ गए साहब, थोड़े पकौड़ियाँ ले आऊँ', कहना। जल्दी से धीरे चलो! प्रश्नकर्ता : व्यवहार पहले या निश्चय पहले? दादाश्री : व्यवहार पहले, लेकिन उसका अर्थ फिर ऐसा नहीं है कि व्यवहार पर राग करो। प्रश्नकर्ता : तब फिर व्यवहार के निरागी हो जाएँ? दादाश्री : राग करेगा तो सिंगल गुनाह है और निरागी हो जाएगा तो डबल गुनाह है, निरागी भी नहीं रहना चाहिए। प्रश्नकर्ता : निरागी अर्थात् किस तरह? दादाश्री : व्यवहार के प्रति निस्पृह हो जाएँ, वह । व्यवहार के प्रति निस्पृह अर्थात् मदर कहें कि, 'तू मेरी बात क्यों नहीं मानता?' तब पुत्र कहेगा, 'मैं आत्मा बन गया हूँ!' ऐसा नहीं चलेगा। व्यवहार में विनय, विवेक सभीकुछ होना चाहिए। अपने व्यवहार से किसी को शिकायत नहीं रहनी चाहिए। किसी भी वस्तु में जल्दबाज़ी करना सिंगल गुनाह है और जल्दबाज़ी नहीं करना, वह डबल गुनाह है। आपको कौन-से गड्ढे में गिरना है? प्रश्नकर्ता : एक भी नहीं। दादाश्री : इसलिए बात को समझ जाओ। जल्दबाज़ी नहीं करेगा तो गाड़ी क्या तेरी राह देखेगी? और जल्दबाज़ी करेगा तो कार को टक्कर मार देगा! इसलिए जल्दबाज़ी करे, उसे सिंगल गुनाह कहा है और जल्दबाज़ी नहीं करे, उसे डबल गुनाह कहा है।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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