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________________ आप्तवाणी-६ प्रश्नकर्ता : परंतु बुद्धि का कुछ पॉज़िटिव फंक्शन होता होगा न? दादाश्री : बुद्धि का पॉज़िटिव फंक्शन यह है कि 'ज्ञानीपुरुष' से यदि बुद्धि सम्यक् करवाई हो, तो वह चलेगी। खुद की समझ से चले, वह विपरीत बुद्धि । वह व्यभिचारिणी बुद्धि कहलाती है। कृष्ण भगवान ने अव्यभिचारिणी बुद्धि उसे कहा है कि जिस बुद्धि पर 'ज्ञानीपुरुष' के पास से गिलट चढ़वा ली हो, वह। जितने समय तक हमारे पास बैठोगे, उतना समय आपकी बुद्धि सम्यक् होती रहेगी। प्रश्नकर्ता : लेकिन फिर जब हम चले जाएँगे, तब फिर क्या होगा? दादाश्री : हमारे पास बैठो और जितनी बुद्धि गिलट हो गई, वह फिर सम्यक् हो जाती है। वह बुद्धि फिर आपको परेशान नहीं करती, और आपकी जितनी बुद्धि विपरीत है, वह आपको परेशान करेगी। प्रश्नकर्ता : हमारी संपूर्ण बुद्धि सम्यक् बुद्धि रहे, विपरीत बुद्धि नहीं रहे, उसके लिए हमें क्या पुरुषार्थ करना चाहिए? दादाश्री : यहाँ पर आकर आपको सम्यक् करवा देनी है। आपसे वह नहीं हो सकेगी। प्रश्नकर्ता : यहाँ आकर सिर्फ बैठने से ही बुद्धि सम्यक् हो जाती है? दादाश्री : यहाँ प्रश्न पूछकर, बातचीत करके, समाधान पाकर बुद्धि सम्यक् होती जाती है। फिर आपमें बुद्धि रहेगी ही नहीं। बुद्धि का अभाव होने में तो बहुत टाइम लगेगा, लेकिन पहले बुद्धि सम्यक् तो होती जाए। प्रश्नकर्ता : हमारे पास सम्यक् बुद्धि है, विपरीत बुद्धि है, और प्रज्ञा भी है। तो इन तीनों का कार्य एक साथ ही चल रहा है? दादाश्री : हाँ, सब एक साथ ही चल रहा है। प्रज्ञा मोक्ष में ले जाने के लिए भीतर सावधान करती रहती है, चेतावनी देती ही रहती है! और मोक्ष में से रोकने के लिए अज्ञा है। अज्ञा मोक्ष में कभी भी नहीं जाने देती। अज्ञा, वह बुद्धि का प्रदर्शन है। बुद्धि तो संसार में फायदा-नुकसान ही दिखाती है, द्वंद्व ही दिखाती है।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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