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आप्तवाणी-३
दादाश्री : क़ाबू में कुछ भी रखना ही नहीं है । वह रहेगा भी नहीं। वह परसत्ता है। उसे तो 'जानते' रहना है कि इस तरफ क़ाबू में रह रहा है और इस तरफ क़ाबू में नहीं रहता। जो जानता है, वह आत्मा है
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वाह ! ज्ञानी ने स्वसत्ता किसे कहा !!
प्रश्नकर्ता : 'प्रति क्षण स्वसत्ता में रहकर स्वसत्ता का उपभोग करूँ', तो स्वसत्ता तो आपने दे ही दी है, इसका उपयोग किस तरह से करूँ? और परसत्ता में प्रवेश न करूँ तो वह किस प्रकार से ? यह विस्तार से समझाइए ।
दादाश्री : तमाम क्रियामात्र परसत्ता है । क्रियामात्र और क्रियावाला ज्ञान परसत्ता है। जो ज्ञान अक्रिय है, ज्ञाता - दृष्टा और परमानंदी है, जो इस सारे क्रियावाले ज्ञान को जानता है, वह अपनी स्वसत्ता है, और वही 'शुद्धात्मा' है।
प्रश्नकर्ता : संसारी लोगों को स्वसत्ता का उपयोग किस तरह से करना चाहिए?
दादाश्री : ज्ञाता-दृष्टा और परमानंदी रहना चाहिए। मन-वचन-काया स्वभाव से ही इफेक्टिव हैं। सर्दी का इफेक्ट होता है, गर्मी का इफेक्ट होता है, आँखें कुछ खराब देखें तो घिन होती है, कान कुछ खराब सुनें तो असर होता है। तो इन सब इफेक्ट्स को हम जानते हैं। यह सब 'फॉरेन डिपार्टमेन्ट' का है, और अपना 'होम डिपार्टमेन्ट' है ।
प्रश्नकर्ता : स्वसत्ता सर्वोपरि होती है?
दादाश्री : इस सत्ता में तो कोई ऊपरी है ही नहीं। जहाँ परमात्मा भी ऊपरी नहीं हो, उसे सत्ता कहते हैं।
ज्ञानी के माध्यम से, स्वसत्ता प्रकट होती है
मैंने आपमें आपकी परमात्मशक्ति ओपन कर दी है। वही संपूर्ण सत्ता है । जिस सत्ता पर से कोई उठा दे, उसे सत्ता कहेंगे ही कैसे ? स्वसत्ता के