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________________ आप्तवाणी-३ दादाश्री : हाँ, वे बहुत उच्च परमाणु होते हैं। जो आत्मा का ठेठ तक का हेतु पूरा कर देते हैं। और अन्य सभी सहूलियतें भी पूरी कर देते हैं। आत्महेतु के लिए जो-जो किया जाता है, उसे चक्रवर्ती जैसी सहूलियतें मिलती है। इसमें आत्मा का कर्तापन है? प्रश्नकर्ता : यह जो जगत् चल रहा है, उसमें पुद्गल का क्या स्थान है? दादाश्री : पुद्गल की खुद की ऐसी अलग-अलग शक्तियाँ हैं कि वे आत्मा को आकर्षित करती हैं। उन शक्तियों से ही मार खाई है न हमने और 'हम' आत्मा हैं, और इस पुद्गल की शक्ति को समझने निकले हैं कि यह क्या है? कौन-सी शक्ति है? अब इसमें वही खुद फँस गए! परमात्मा खुद ही फँस गए। परमात्मा अरूपी हैं और रूपी परमाणुओं की अधातु जंजीरों में बंदी हो गए हैं !!! अब किस तरह से छूटेंगे? खुद के स्वरूप का भान हो जाए, तब छूटेंगे। प्रश्नकर्ता : आत्मा फँसा है, वह भी नैमित्तिक फँसा है न? दादाश्री : हाँ! पदगल कर्ता स्वभाव का है, क्रियाकारी है, लेकिन वह स्वतंत्र रूप से कर्ता माना ही नहीं जा सकता न! उसके साथ चैतन्य की उपस्थिति होनी चाहिए। पुद्गल के धक्के से आत्मा कर्ता हो गया। पुद्गल का दख़ल नहीं होता तो कुछ भी नहीं था। अतः आत्मा को नैमित्तिक कर्ता कहा है। 'डिस्चार्ज', परसत्ता के अधीन प्रश्नकर्ता : खाते समय खाने में कंट्रोल नहीं रहता। दादाश्री : खाते समय खाता रहता है, वह पदगल का स्वभाव है। पुद्गल, पुद्गल को खींचता है। पाँच सौ लोग खाने बैठें और उसमें कोई एटिकेटवाला साहब हो, और उसे यदि कहें कि भोजन के लिए बैठिए' तो वह 'ना, ना' करता है। लेकिन बैठने के बाद यदि चावल देने में थोड़ी
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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