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आप्तवाणी-३
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ज्ञान तो उसे कहते हैं कि किसी भी संयोग में हाज़िर हो जाए। हर एक समय में, जहाँ जाओ वहाँ हाज़िर हो जाए। हाज़िर होकर वापस समाधान दे। अपना यह ज्ञान सर्वसमाधानकारी ज्ञान है। किसी भी द्रव्य में समाधान रहता है, किसी भी क्षेत्र में समाधान रहता है और किसी भी समय पर समाधान रहता है, ऐसा यह विज्ञान है। कोई गाली दे, जेब काट ले तो भी उस घड़ी यह ज्ञान समाधान देगा। ज्ञान सावधान करता रहता है, निरंतर।
प्रश्नकर्ता : 'मुझे ज्ञान का रियलाइज़ेशन चाहिए', ऐसा किसे कहते हैं?
दादाश्री : सिर्फ रियलाइज़ेशन ही नहीं, लेकिन जो हमेशा आपके साथ रहे, वही ज्ञान है।
'ज्ञान', अनादि से वही प्रकाश दुषमकाल, सुषमकाल, कलियुग, सत्युग सबकुछ बदलता है, लेकिन ज्ञान तो अनादिकाल से यही का यही है। वीतरागों का अमर ज्ञान है। ज्ञान अर्थात् प्रकाश। प्रकाश में एक भी ठोकर नहीं लगती, चिंता नहीं होती।
'यह' वीतरागों का ज्ञान है। जैन, वैष्णव वगैरह तो वीतराग ज्ञान लाने के साधन हैं। ज्ञान 'ज्ञानी' के पास से ही मिला हुआ होना चाहिए, तभी एक्ज़ेक्ट टाइम पर हाज़िर होगा। यों ही गप्प नहीं चलेगी। जो खुद का कल्याण करें और औरों का भी कल्याण करें, वे 'ज्ञानी'!
आत्मज्ञान के बिना सिद्धि नहीं है। दूसरे सभी उपाय हठयोग हैं। ज्ञान अन्य किसी भी तरह से प्राप्त नहीं होता। अज्ञान गया तब से ही मुक्ति का अनुभव होता है। अज्ञान से बंधन है। किसका अज्ञान? खुद खुद का ही अज्ञान है। कृष्ण भगवान ने इसे गुह्यतम विज्ञान कहा है, गुह्य को ही कोई नहीं समझ सकता, तो गुह्यतर और गुह्यतम कब समझ में आएगा?
__ पौद्गलिक लेन-देन का व्यवहार जिसका बंद हो चुका है, उसे नि:शंक आत्मा प्राप्त हो गया, ऐसा कहा जाएगा। उसे क्षायक समकित कहा