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________________ आप्तवाणी- -३ दादाश्री : ऐसे नहीं पहचान सकते, लेकिन उनके शब्दों पर से पता चल जाता है। अरे, उनकी आँखें देखकर ही पता चल जाता है । जिस तरह ये पुलिसवाले बदमाश की आँख देखकर जाँच करते हैं न, कि यह बदमाश लगता है। उसी तरह आँखें देखकर वीतरागी का भी पता चलता है। १३ अनुभव होता है, तब तो .... पेरालिसिस होने पर भी सुख नहीं जाए, वही आत्मानुभव कहलाता है। सिर दु:खे, भूख लगे, बाहर भले ही कितनी भी मुश्किलें आएँ, लेकिन अंदर की शाता (सुख परिणाम) नहीं जाती, उसे आत्मानुभव कहा है। आत्मानुभव तो दुःख को भी सुख में बदल देता है और मिथ्यात्वी को तो सुख में भी दुःख महसूस होता है । क्योंकि दृष्टि में फर्क है । यथार्थ, जैसा है वैसा नहीं दिखता, उल्टा दिखता है । मात्र दृष्टि बदलने की ज़रूरत है। बाकी, क्रियाएँ लाखों जन्मों तक करते रहोगे, फिर भी उसके फल स्वरूप संसार ही मिलेगा । दृष्टि बदलनी है। अज्ञान से उत्पन्न किए हुए का ज्ञान से छेदन करना है। पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) में जो खलबली है, वह बंद हो जाएगी, तब आत्मा का अनुभव होगा। प्रश्नकर्ता : ‘आत्मानुभव हुआ है', ऐसा कब कहा जा सकता है? दादाश्री : 'खुद' की प्रतीति हो जाए, तब । 'खुद आत्मा है', ऐसी प्रतीति खुद को हो जाए और ‘मैं चंदूलाल हूँ', वह बात गलत निकली, जब ऐसा अनुभव हो, तब जानना कि अज्ञान गया । ज्ञानियों ने आत्मा का अनुभव किसे कहा है? कल तक जो दिखता था, वह खत्म हो गया और नई तरह का दिखने लगा । अनंत जन्मों से भटक रहे थे, और जो रिलेटिव दिख रहा था वह गया और नई ही तरह का रियल दिखना शुरू हो गया, यही आत्मा का अनुभव है! द्रश्य को अद्रश्य किया और अद्रश्य था, वह द्रश्य हो गया !! जो थ्योरिटिकल है, वह अनुभव नहीं कहलाता। वह तो समझ कहलाती है। और प्रेक्टिकल, वह अनुभव कहलाता है । जिसे आत्मा का संपूर्ण अनुभव हो चुका है, वे 'ज्ञानीपुरुष' कहलाते
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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