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________________ आप्तवाणी-३ निराकुलता उत्पन्न होगी। पूरा जगत् आकुलता-व्याकुलता में फँसा हुआ है। निराकुलता तो सिद्ध भगवान के आठ गुणों में से एक है। यदि रियल वस्तु प्राप्त हो जाए तो निराकुलता उत्पन्न हो जाएगी, नहीं तो कभी भी अंत ही नहीं आएगा। अनंत जन्मों से इस भ्रांतज्ञान को तो जानते ही आए हैं न? प्रश्नकर्ता : भ्रांति ही मायावाद है? भ्रांति के बारे में अधिक समझाइए? दादाश्री : भ्रांति और मायावाद एक ही है। निज स्वरूप का अज्ञान ही पहले नंबर की भ्रांति है। भ्रांति अर्थात् जो नहीं है उसकी कल्पना होना, वह । आत्मज्ञान, वह कल्पित वस्तु नहीं है। वहाँ पर शब्द बोलने से नहीं चलता, वह अनुभवसहित होना चाहिए। सेल्फ का रियलाइज़ेशन होना चाहिए। जैसा इन पुस्तकों में लिखा हुआ है, आत्मा वैसा नहीं है। मैं कौन हूँ', उसे जानना, वह शब्दप्रयोग नहीं है, अनुभवप्रयोग है। बात को समझना है। बात को समझे तो मोक्ष सहज ही है। नहीं तो कोटि उपाय करने से, उल्टा होकर जल मरे, तब भी मोक्ष हो सके ऐसा नहीं है। पुण्य का बंधन होगा, लेकिन बंधन तो होगा ही। विभ्रांत दशा! लेकिन किसकी? जब तक संबंध है, तब तक बंध है। खुद के स्वरूप में आ जाए तो संबंध से मुक्त हो जाता है। संबंध अर्थात् क्या? नाम, वह संबंध है। 'मैं पुष्पा हूँ, इनकी बेटी हूँ', वह संबंध है। खुद के स्वभाव में आ जाए तो खुद असंग ही है, निर्लेप ही है। अनंतकाल से विभ्रांतदशा में ही है। आत्मा को विभ्रांति नहीं होती। यह तो मनुष्य को विभ्रांति होती है! यह तो कुछ कॉज़ेज़ उत्पन्न होने से, संयोगों के दबाव से विभाविक ज्ञान उत्पन्न हो जाता है, इसलिए इसमें मनुष्य गुनहगार नहीं है। भ्रांति से गुनहगार दिखता है, और ज्ञान से तो निर्दोष ही है। 'ज्ञानी' को पूरा जगत् निर्दोष दिखता है। 'ज्ञानीपुरुष' तो, बेजोड़ ही! प्रश्नकर्ता : 'ज्ञानी' अर्थात् रियलाइज़्ड सोल (आत्मा)?
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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