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________________ नियाणां : अपना सारा पुण्य लगाकर किसी एक वस्तु की कामना करना : राहखर्च, पूँजी : फजीता सिलक तायफ़ा उपलक कढ़ापा अजंपा राजीपा सिलक पोतापणुं लागणी वसाj अभिनिवेश तरंग आरे : सतही, ऊपर ऊपर से, सुपरफ्लुअस : कुढ़न, क्लेश : बेचैनी, अशांति, घबराहट : गुरजनों की कृपा और प्रसन्नता : जमापूंजी :: मैं हूँ और मेरा है, ऐसा आरोपण, मेरापन : भावुकतावाला प्रेम, लगाव : जड़ी-बूटी डालकर बनाई गई मिठाई : अपने मत को सही मानकर पकड़े रखना : शेखचिल्ली जैसी कल्पनाएँ : कालचक्र का बारहवाँ हिस्सा : वर्चस्व, सत्ता चलण
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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