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आप्तवाणी-३
२७९ तो प्रेम की ही बरसात होती है। कोई द्वेष करता हुआ आए फिर भी प्रेम देंगे।
क्रमिक मार्ग मतलब शुद्ध व्यवहारवाले होकर शुद्धात्मा बनो और अक्रम मार्ग मतलब पहले शुद्धात्मा बनकर फिर शुद्ध व्यवहार करो। शुद्ध व्यवहार में व्यवहार सभी होता है, लेकिन उसमें वीतरागता होती है। एकदो जन्मों में मोक्ष जानेवाले हों, वहाँ से शुद्ध व्यवहार की शुरूआत होती है।
शुद्ध व्यवहार स्पर्श नहीं करे, उसका नाम 'निश्चय'। व्यवहार उतना पूरा करना कि निश्चय को स्पर्श नहीं करे, फिर व्यवहार चाहे किसी भी प्रकार का हो।
चोखा व्यवहार और शुद्ध व्यवहार में फर्क है। व्यवहार चोखा रखे वह मानवधर्म कहलाता है और शुद्ध व्यवहार तो मोक्ष में ले जाता है। बाहर या घर में लड़ाई-झगड़ा न करे वह चोखा व्यवहार कहलाता है। और आदर्श व्यवहार किसे कहा जाता है? खुद की सुगंधी फैलाए वह।
आदर्श व्यवहार और निर्विकल्प पद, वे दोनों प्राप्त हो जाएँ तो फिर बचा क्या? इतना तो पूरे ब्रह्मांड को बदलकर रख दे।
आदर्श व्यवहार से मोक्षार्थ सधे दादाश्री : तेरा व्यवहार कैसा करना चाहता है? प्रश्नकर्ता : संपूर्ण आदर्श।
दादाश्री : बूढ़ा होने के बाद आदर्श व्यवहार हो, वह किस काम का? आदर्श व्यवहार तो जीवन की शुरूआत से होना चाहिए।
'वर्ल्ड' में एक ही मनुष्य आदर्श व्यवहारवाला हो तो उससे पूरा 'वर्ल्ड' बदल जाए, ऐसा है।
प्रश्नकर्ता : आदर्श व्यवहार किस तरह होता है?
दादाश्री : आपको (महात्माओं को) जो निर्विकल्प पद प्राप्त हुआ है तो उसमें रहने से आदर्श व्यवहार अपने आप आएगा। निर्विकल्प पद प्राप्त होने के बाद कोई दख़ल होती नहीं है, फिर भी आपसे दख़ल हो