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________________ आप्तवाणी-३ २६३ वह बेचारा नौकरी करने आता है और आप उसे धमकाते हो, तो वह बैर बाँधकर सहन कर लेगा। नौकर को धमकाना मत, वह भी मनुष्यजाति है। उसे घर पर बेचारे को दुःख और यहाँ आप सेठ बनकर धमकाओ तब वह बेचारा कहाँ जाए? बेचारे पर ज़रा दयाभाव तो रखो! यह तो ग्राहक आए तो शांति से और प्रेम से उसे माल देना। ग्राहक नहीं हों, तब भगवान का नाम लेना। यह तो ग्राहक नहीं हों, तब इधर देखता है और उधर देखता है। अंदर अकुलाता रहता है, 'आज खर्च सिर पर पड़ेगा। इतना नुकसान हो गया', ऐसा चक्कर चलाता है, चिढ़ता है और नौकर को धमकाता भी है। ऐसे आर्तध्यान और रौद्रध्यान करता रहता है ! जो ग्राहक आते हैं, वह 'व्यवस्थित' के हिसाब से जो ग्राहक आनेवाला हो वही आता है, उसमें अंदर चक्कर मत चलाना। दुकान में ग्राहक आए तो पैसे का लेन-देन करना, लेकिन कषाय मत करना, पटाकर काम करना है। यदि पत्थर के नीचे हाथ आ जाए तो हथौड़ा मारते हो? ना, वहाँ तो अगर दब जाए तो पटाकर निकाल लेते हो। उसमें कषाय का उपयोग करो तो बैर बँधेगा और एक बैर में से अनंत हो जाते हैं। इस बैर से ही जगत् खड़ा है, यही मूल कारण है। प्रामाणिकता, भगवान का लाइसेन्स प्रश्नकर्ता : आजकल प्रामाणिकता से व्यापार करने जाएँ तो ज़्यादा मुश्किलें आती हैं, ऐसा क्यों? दादाश्री : प्रामाणिकता से काम किया तो एक ही मुश्किल आएगी, परंतु अप्रामाणिक रूप से काम करोगे तो दो प्रकार की मुश्किलें आएँगी। प्रामाणिकता की मुश्किल में से तो छूटा जा सकेगा, परंतु अप्रामाणिकता में से छूटना मुश्किल है। प्रामाणिकता, वह तो भगवान का बड़ा 'लाइसेन्स' है, उस पर कोई ऊँगली नहीं उठा सकता। आपको वह 'लाइसेन्स' फाड़ डालने का विचार आता है? ....नफा-नुकसान में, हर्ष-शोक क्या? व्यापार में मन बिगड़े तब भी नफा ६६,६१६ होगा और मन नहीं
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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