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________________ आप्तवाणी-३ २४१ जैसा अभिप्राय वैसा असर प्रश्नकर्ता : ढोल बज रहा हो तो, चिढ़नेवाले को चिढ़ क्यों होती है? दादाश्री : वह तो माना कि 'पसंद नहीं है' इसलिए। यह ढोल बज रहा हो तो आप कहना कि 'अहोहो! ढोल बहुत अच्छा बज रहा है!' इसलिए फिर अंदर कुछ नहीं होगा। 'यह खराब है' ऐसा अभिप्राय दिया तो अंदर सारी मशीनरी बिगड़ जाती है। अपने को तो नाटकीय भाषा में कहना है कि 'बहुत अच्छा ढोल बजाया।' इससे अंदर छूता नहीं। ___ यह 'ज्ञान' मिला है इसलिए सब 'पेमेन्ट' किया जा सकता है। विकट संयोगों में तो ज्ञान बहुत हितकारी है, ज्ञान का 'टेस्टिंग' हो जाता है। ज्ञान की रोज़ 'प्रैक्टिस' करने जाएँ तो कुछ ‘टेस्टिंग' नहीं होता। वह तो एकबार विकट संयोग आ जाए तो सब 'टेस्टेड' हो जाता है। यह सद्विचारणा, कितनी अच्छी हम तो इतना जानते हैं कि झगडने के बाद वाइफ के साथ व्यवहार ही नहीं रखना हो तो अलग बात है। परंतु वापस बोलना है तो फिर बीच की सारी ही भाषा गलत है। हमें तो यह लक्ष्य में ही होता है कि दो घंटे बाद वापस बोलना है, इसलिए उसके साथ किच-किच नहीं करें। यह तो, यदि आपको अभिप्राय वापस बदलना नहीं हो तो अलग बात है। यदि अपना अभिप्राय नहीं बदलें तो अपना किया हुआ खरा है। वापस यदि वाइफ के साथ बैठनेवाले ही न हों तो झगड़ना ठीक है। लेकिन यह तो कल वापस साथ में बैठकर भोजन करनेवाले हो, तो फिर कल नाटक किया उसका क्या? वह विचार करना पड़ेगा न? ये लोग तिल सेकसेककर बोते हैं, इसलिए सारी मेहनत बेकार जाती है। जब झगड़े हो रहे हों, तब लक्ष्य में रहना चाहिए कि ये कर्म नाच नचा रहे हैं। फिर उस 'नाच' का ज्ञानपूर्वक हल लाना चाहिए। प्रश्नकर्ता : दादा, यह तो झगड़ा करनेवाले दोनों व्यक्तियों को समझना चाहिए न?
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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