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________________ १९० आप्तवाणी-३ है। बाकी यों ही एक स्पंदन भी आपको छुए ऐसा नहीं है। आप संपूर्ण स्वतंत्र हो। किसी की दख़ल आपमें नहीं है। प्रश्नकर्ता : टकराव में मौन हितकारी है या नहीं? दादाश्री : मौन तो बहुत हितकारी कहलाता है। प्रश्नकर्ता : परंतु दादा, बाहर मौन होता है, परंतु अंदर तो बहुत घमासान चल रहा होता है, उसका क्या होगा? दादाश्री : वह काम का नहीं है। मौन तो सबसे पहले मन का चाहिए। उत्तम तो, एडजस्ट एवरीव्हेर प्रश्नकर्ता : जीवन में स्वभाव नहीं मिलते इसीलिए टकराव होता है न? दादाश्री : टकराव होता है, उसीका नाम संसार है! प्रश्नकर्ता : टकराव होने का कारण क्या है? दादाश्री : अज्ञानता। प्रश्नकर्ता : सिर्फ सेठ के साथ ही टकराव होता है ऐसा नहीं है, सबके साथ होता है, उसका क्या? दादाश्री : हाँ, सबके साथ होता है। अरे! इस दीवार के साथ भी होता है। प्रश्नकर्ता : उसका रास्ता क्या होगा? दादाश्री : हम बताते हैं, फिर दीवार के साथ भी टकराव नहीं होगा। इस दीवार के साथ टकराता है उसमें किसका दोष? जिसे लगा उसका दोष। उसमें दीवार को क्या? चिकनी मिट्टी आए और आप फिसल जाएँ उसमें भूल आपकी है। चिकनी मिट्टी तो निमित्त है। आपको निमित्त को समझकर अंदर उँगलियाँ गड़ा देनी पड़ेंगी। चिकनी मिट्टी तो होती ही है, और फिसला देना, वह तो उसका स्वभाव ही है।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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