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________________ 'मैं करता हूँ' वह कर्ताभाव है और कर्ताभाव ही कर्म है। जहाँ कर्ताभाव नहीं है वहाँ पर कर्म नहीं हैं; इसलिए वहाँ न तो पाप है न ही पुण्य ! देह परमाणुओं का बना हुआ है । क्रोध और मान के परमाणुओं की मात्रा विशेष होने के कारण पुरुष देह मिलता है और माया और लोभ के परमाणुओं की मात्रा विशेष हो, तब स्त्रीदेह की प्राप्ति होती है । परमाणुओं की मात्रा में परिवर्तन हो जाए तो दूसरे जन्म में लिंगभेद हो जाता है, आत्मा में भेद नहीं है। अच्छा-बुरा विकल्प से दिखता है । निर्विकल्पी के लिए अच्छा-बुरा होता ही नहीं । जो आँख से दिखें, दूरबीन से दिखें - वे सभी स्थूल परमाणु हैं, मिश्रसा- वे सूक्ष्म हैं, प्रयोगशा - वे सूक्ष्मतर और विश्रसा - वे सूक्ष्मतम परमाणु हैं! पुद्गल भी सत् यानी कि अविनाशी है। पुद्गल के भी पर्याय हैं जो खुद के प्रदेश में रहकर बदलते हैं, जो कि विनाशी हैं। पुद्गल पूरणगलन स्वभाव का है ! आत्मा के अलावा सभी भाव पुद्गल भाव हैं । मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, क्रोध, मान, माया, लोभ, वे सभी पुद्गल भाव हैं। उन्हें देखते रहना है। उनमें एकाकार हुए तो जोखिमदारी आएगी, और एकाकार नहीं हुए तो छूट जाएँगे! पुद्गलभाव को देखता और जानता है वह आत्मभाव है। मुँह बिगड़ जाए, मन बिगड़ जाए, ऐसा सब असर हो जाए तो उसे पुद्गल भाव में एकाकार हो गए, ऐसा कहा जाएगा। I जब तक स्वसत्ता को जाना नहीं, तब तक खुद परसत्ता में ही है परसत्ता को स्वसत्ता माने, वही अहंकार है । सत्ता का थोड़ा-सा भी दुरुपयोग हो, तो सत्ता चली जाती है। तमाम क्रिया और क्रियावाला ज्ञान, वह सारा ही परसत्ता है। जो 19
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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