SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८ आप्तवाणी-३ ज़्यादा अक्लवाले हैं। इन पशु-पक्षियों के क्या बीवी-बच्चे नहीं हैं? उन्हें शादी करवानी पड़ती है? यह तो, मनुष्यों के ही पत्नी-बच्चे हुए हैं। मनुष्य ही शादी करवाने में पड़े हुए हैं। पैसे इकट्ठे करने में पड़े हुए हैं। अरे, आत्मा जानने के पीछे मेहनत कर न! दूसरे किसी के लिए मेहनत-मजदूरी करने जैसी है ही नहीं। अभी तक जो कुछ किया है, वह दुःख मनाने जैसा किया है। इन बच्चों को चोरी करना कौन सिखाता है? सब बीज में ही मौजूद है। यह नीम हरएक पत्ते में कड़वा क्यों है? उसके बीज में ही कड़वाहट मौजूद है। ये मनुष्य अकेले ही दु:खी-दु:खी हैं, परंतु उसमें उनका कोई दोष नहीं। क्योंकि चौथे आरे तक सुख था, और यह तो पाँचवाँ आरा, इस आरे (कालचक्र का बारहवाँ हिस्सा) का नाम ही दूषमकाल! इसलिए महादुःख उठाकर भी समता उत्पन्न नहीं होती है। काल का नाम ही दूषम!! फिर सुषम ढूंढना वह भूल है न?
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy