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आप्तवाणी-३
दो, लेकिन अंदर बैठे हुए की ही खोज करे तब काम होगा। भगवान ऊपर हैं, ऊपर हैं - ऐसे गप्प लगाए, चिठ्ठियाँ लिखे, विनती करे, तो उससे कुछ होगा नहीं।
बाकी, लोग भगवान का अवलंबन लेते हैं, लेकिन वह किस आधार पर? भगवान को पहचाने बिना उनका सीधा अवलंबन किस तरह से लिया जा सकता है? भगवान की तो पहले पहचान होनी चाहिए। पूरा जगत् भगवान को जानता ही नहीं।
...वह तो 'मिकेनिकल एडजस्टमेन्ट' इस जगत् को जो शक्ति चला रही है, उसे ही पूरा जगत् भगवान मानता है। वास्तव में जगत् को चलानेवाला भगवान नहीं है, वह तो एक 'मिकेनिकल एडजस्टमेन्ट' है, 'कॉम्प्यूटर' जैसा है। मशीनरी' वीतराग होती है या राग-द्वेषवाली होती है?
प्रश्नकर्ता : वीतराग होती है।
दादाश्री : तो यह जगत् चलानेवाली शक्ति वीतराग है। जो 'मिकेनिकल एडजस्टमेन्ट' है, उसे लोग ऐसा समझते हैं कि यही भगवान है। इस शक्ति में वीतरागता का गुण है, लेकिन वह शक्ति भगवान है ही नहीं, वह तो ओन्ली ‘साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' है। लेकिन लोगों को उसका भान नहीं है, अभानता से सब चल रहा है। और खुद के स्वरूप का जिसे भान हो गया, उसके बाद उसका 'एविडेन्स' बदलता है। वह छूट जाता है, मुक्त हो जाता है ! 'मैं ही चंदूभाई हूँ' यह ‘रोंग बिलीफ़' है।
___ 'द वर्ल्ड इज द कम्प्लीट ड्रामा इटसेल्फ।' ड्रामा की व्यवस्था भी अपने आप ही इटसेल्फ हुई है, और वह भी फिर 'व्यवस्थित' के वश में है।