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________________ ज़रा-सा थोड़ा ज़हर चेतन को 'ऑन द मोमेन्ट' घर खाली करवा देता है! पुद्गल की कितनी अधिक शक्ति !!! परमाणुओं की शुद्ध अवस्था अर्थात् विश्रसा। संयोगों के दबाव से 'मैं चंदूलाल हूँ, और मैंने यह किया !' जब ऐसा अज्ञान उत्पन्न होता है तब परमाणुओं का चार्ज प्रयोग होता है, इसलिए वह प्रयोगशा कहलाए । प्रयोगशा होने के बाद कारण देह बनता है जो अगले जन्म में मिश्रसा बन जाता है I वह कड़वे-मीठे फल देकर जाए, ठेठ तब तक मिश्रसा के रूप में रहता है। फल देते समय वापस बेभान अवस्था में नया 'चार्ज' कर देता है और साइकल (चक्र) चलती ही रहती है, जिसे लोग कर्म भोगा और सुखदुःख परिणाम कहते हैं, 'ज्ञान' उन्हें परमाणुओं की परिवर्तित होती हुई अवस्थाओं के रूप में 'देखता और जानता' रहता है ! उससे नया प्रयोग नहीं होता है, और वह चक्र टूट जाता है ! देह तरह-तरह के परमाणुओं से खचाखच भरा हुआ हैं । उग्र परमाणुओं के उदय में तन्मयाकारपन क्रोध को जन्म देता है। वस्तु देखते ही आसक्ति के परमाणु फूटने से तन्मयाकार हो जाए, तब लोभ जन्म लेता है। मान मिलते ही तन्मयाकार होकर अंदर ठंडक का आनंद ले और 'उसमें' खुद एकाकार हो जाए, वहाँ पर अहंकार का जन्म हुआ! इन सभी अवस्थाओं में 'खुद' निर्तन्मय रहे तो क्रोध - मान - माया - लोभ की हस्ती रहेगी ही नहीं। सिर्फ परमाणुओं का इफेक्ट ही बाकी रहेगा, जिसकी निर्जरा हो जाएगी!! क्रोध में 'प्रतिष्ठित आत्मा' एकाकार होता है, 'बिलीफ़ आत्मा' एकाकार होता है, मूल आत्मा एकाकार होता ही नहीं । पूरण- गलन के विज्ञान को ज्ञानी और अधिक सूक्ष्मता से समझाते हैं कि भोजन किया, उसे लौकिक भाषा में पूरण किया कहते हैं। लेकिन वह पूरण'फर्स्ट गलन' है और पखाना जाना वह 'सेकन्ड गलन' है । और वास्तव में जो पूरण होता है वह सूक्ष्म वस्तु है, जिसे 'ज्ञानी' ही देख सकते हैं, जान सकते हैं! 17
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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