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________________ आप्तवाणी-३ १२१ करती, लेकिन सूझ में से चार्ज उत्पन्न हो जाता है। सूझ में अहंकार मिल जाए तो चार्ज उत्पन्न हो जाता है। सूझ में अहंकार नहीं है, लेकिन बाद में उसमें अहंकार मिल जाता है। प्रश्नकर्ता : सूझ और दर्शन एक ही हैं क्या? दादाश्री : एक हैं, लेकिन लोग दर्शन को बहुत निचली भाषा में ले जाते हैं। दर्शन तो बहुत उच्च वस्तु हैं । वीतरागों ने सूझ को दर्शन कहा है। भटकते हुए ग्यारहवें मील से आगे चले तो वहाँ का दर्शन हुआ। जैसे-जैसे आगे चलता है, वैसे-वैसे उसका डेवेलपमेन्ट बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उसका दर्शन बढ़ता जाता है। और एक दिन अंदर दर्शन हो जाए कि 'मैं यह नहीं हूँ, लेकिन मैं आत्मा हूँ', तो दर्शन निरावरण हो जाता है! आप जो प्रोजेक्ट करते हो, वह सूझ के आधार पर करते हो, फिर जो प्रेरणा होती है वह लिखते हो। सूझ बहुत सूक्ष्म वस्तु है। जगत् में अंतरसूझ को किसीने हेल्प नहीं की है। योग में अंतरसूझ बहुत स्पीडिली खिलती है। लेकिन लोग उल्टे मार्ग पर गए इसलिए सिर्फ चक्र ही देखते रहते हैं! सूझ के बाद भाव उत्पन्न होता है, जगत् में शायद ही कुछ लोग, सूझ में और भाव में जागृत रहते हैं। सूझ और भाव जो सहज प्रयत्न से मिलते हैं, अप्रयास प्रयत्न से मिलते हैं, वही उसके लिए प्रकाश स्तंभ बन जाते हैं बाकी जिसे भावजागृति हो उसीको जागृत कहते हैं, और सूझ जागृति तो बहुत उच्च वस्तु है। भावजागृति में आने का मतलब जैसे सपने में से अंगड़ाई लेकर उठने पर कुछ भान हो, वैसा समझ में आता प्रश्नकर्ता : सूझ और प्रज्ञा में क्या फर्क है? दादाश्री : प्रज्ञा, वह परमानेन्ट वस्तु है और सूझ चेन्ज होती रहती है। जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे सूझ चेन्ज होती रहती है। प्रज्ञा, वह 'टेम्परेरी परमानेन्ट' वस्तु है। जब तक संपूर्णपद प्राप्त नहीं हो जाता,
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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