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आप्तवाणी-३
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नहीं माना जाता। तीर्थंकर और ज्ञानीपुरुष देहधारी परमात्मा माने जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : यह जो ब्रह्म है, वह क्या है? दादाश्री : आपका नाम क्या है? प्रश्नकर्ता : चंदूलाल।
दादाश्री : आप चंदूलाल हो, वह बिल्कुल गलत नहीं है। बाइ रिलेटिव व्यू पोइन्ट यू आर चंदूभाई एन्ड बाइ रियल व्यू पोइन्ट यू आर ब्रह्म! ब्रह्म अर्थात् आत्मा, लेकिन ब्रह्म का भान होना चाहिए न?
प्रश्नकर्ता : मायिक ब्रह्म और अमायिक ब्रह्म, वह समझाइए।
दादाश्री : ऐसा है न, मायिक ब्रह्म को ब्रह्म कहना गुनाह है। जो भ्रमणा में पड़ा है, उसे ब्रह्म कहेंगे ही किस तरह? मायिक अर्थात् भ्रमणा में पड़ा हुआ। सच्चे ब्रह्म को ब्रह्म कह सकते हैं।
प्रश्नकर्ता : जो मनुष्य संपूर्ण ब्रह्मस्वरूप, परमात्मास्वरूप हो गया, तो वह बात कर सकता है?
दादाश्री : जो बात नहीं कर सकते, वे ब्रह्मस्वरूप हुए ही नहीं हैं। संपूर्ण ब्रह्मस्वरूप कब कहलाएगा कि बाहर का संपूर्ण भान हो, संसारियों से भी अधिक भान हो। देहभान चला जाए, वह तो एकाग्रता है। उसे 'आत्मा प्राप्त हुआ', नहीं कहा जाएगा। संपूर्ण ब्रह्मस्वरूप होने के बाद में वाणी रहती है, सबकुछ रहता है। क्योंकि देह और आत्मा दोनों भिन्न ही बरतते हैं। जैसे यह कोट और शरीर भिन्न बरतते हैं, वैसे। अपनेअपने निजधर्म में रहते हैं, ब्रह्म, ब्रह्म के धर्म में और अनात्मा, अनात्मा के भाग में रहता है। देहभान नहीं रहे, वह ज्ञान की पूर्णता की, निर्विकल्प दशा की निशानी नहीं है। एकाग्रता करे, कुंडलिनी जागृत करे, वह टेम्परेरी अवस्था है। बाद में फिर वापस जैसा था वैसे का वैसा ही हो जाता है। यह हेल्पिंग चीज़ है, लेकिन पूर्ण दशा नहीं है।