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________________ आप्तवाणी-३ शुद्धात्मा पद प्राप्त करने के बाद अंदर जो ज्ञेय हैं कि जो 'डिस्चार्ज' के स्वरूप में हैं, उनके हम ज्ञाता हैं। 'डिस्चार्ज' अपने ताबे में नहीं है, व्यवस्थित के ताबे में है। अपना तो ज्ञायकभाव है। शुद्धात्मा, वह परमात्मा नहीं है। शुद्धात्मा तो परमात्मा के यार्ड में आया हुआ एक स्थान है। शुद्धात्मा पद हो जाने के बाद आगे का पद केवलज्ञान स्वरूप रहता है, वह अंतिम पद है। प्रश्नकर्ता : केवलज्ञान होने पर परमात्मा पद में आते हैं? दादाश्री : यह शुद्धात्मा पद प्राप्त होना, यानी कि केवलज्ञान के अंशों की शुरूआत होती है। सर्वांश होने पर केवलज्ञान है। केवलज्ञान के कुछ अंशों का ग्रहण हो जाए, तो आत्मा बिल्कुल अगल ही दिखता रहता है, उसके बाद फिर एब्सोल्यूट होता है। ___ जागृति वही ज्ञान है और संपूर्ण जागृति को केवलज्ञान कहते हैं। तमाम प्रकार की जागृति, एक-एक अणु, एक-एक परमाणु की जागृति को केवलज्ञान कहते हैं। केवलज्ञान की जो आखरी सीढ़ी है, उसमें केवलस्वरूप की ही रमणता रहती है। शुद्ध ज्ञान यानी व्हाट इज़ रियल? एन्ड व्हाट इज़ रिलेटिव? इस तरह दो भाग कर दे, वह और विशुद्ध ज्ञान अर्थात् थ्योरी ऑफ एब्सोल्यूटिज़म। विशुद्ध ज्ञान अर्थात् परमात्मा! प्रश्नकर्ता : ‘रियलिटी' और 'रियल' इन दोनों में क्या कहना चाहते हैं? दादाश्री : हम क्या कहते हैं कि 'रियलिटी' से 'रियल' में जाओ। रियलिटी से अंदर ठंडक होती है और अनुभव होता है। प्रश्नकर्ता : भगवान ने स्थितप्रज्ञ दशा होने के बाद एक पैर पर खड़े रहकर तपश्चर्या की थी, उसके बाद उन्हें केवलज्ञान हुआ था। तो हम वह सब नहीं करें, तब तक केवलज्ञान कहाँ से मिलेगा? दादाश्री : केवलज्ञान तो ज्ञान क्रिया से होता है, और यह तो अज्ञान क्रिया कहलाती है। एक पैर पर खड़े रहना, वह तो हठाग्रह कहलाता है।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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