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________________ आप्तवाणी - ३ ७९ प्रश्नकर्ता : सिद्ध क्षेत्र में आत्मा भाजन के अनुसार होता है? दादाश्री : वह अंतिम देह के भाजन के अनुसार होता है। अंतिम देह जिस आकार का होता है, उससे थोड़ा ही छोटा होता है। प्रश्नकर्ता : तो आत्मा का आकार है या निराकार है ? दादाश्री : निराकार है, फिर भी साकारी है । कोई मनुष्य ऐसा नहीं कह सकता कि साकारी ही है । निराकार तो है ही, लेकिन साकार भी है, वह। साकार उसका अलग-अलग स्वभाव का है। प्रश्नकर्ता : जगत् में सबकुछ साकारी है, तो लोग निराकारी कहते हैं, वह किस प्रकार से ? दादाश्री : निराकार, वह चीज़ अलग है। लोग निराकार को 'वैक्यूम' जैसा समझते हैं, लेकिन यह आकाश जैसा है। आकाश निराकारी है। प्रश्नकर्ता : संत कहते हैं कि परमात्मा निराकार है । फिर ऐसा भी कहते हैं कि राम और कृष्ण हो चुके हैं, वे भगवान हैं । देहवाले निराकार हैं, ऐसा कहते हैं, इसलिए हम उलझ जाते हैं। I दादाश्री : जो निराकार हैं, वे तो परमात्मा हैं । लेकिन निराकार को भजें किस तरह? वह तो जिनके अंदर परमात्मा प्रकट हुए हैं, उन्हें भजने से परमात्मा प्राप्त होंगे। भगवान तो विशेषण है, जब कि परमात्मा, वह विशेषण नहीं है। परमात्मा का, निराकार का, ध्यान नहीं किया जा सकता। लेकिन देहधारी परमात्मा हों, तो उनके दर्शन किए जा सकते हैं, निदिध्यासन किया जा सकता है। आत्मा : अमूर्त वह आत्मा अमूर्त है और मूर्त के अंदर रहा हुआ है। जो मूर्त है, रिलेटिव है और अंदर अमूर्त है, वह 'रियल' है । जिस मूर्ति में अमूर्त प्रकट हो गए हैं, वे मूर्तामूर्त भगवान कहलाते हैं । 'ज्ञानीपुरुष' प्रकट भगवान कहलाते हैं, वहाँ पर अपना आत्यंतिक कल्याण हो जाता है।
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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