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________________ संसरण मार्ग ३५ दिख रहा है! ऐसा किसलिए? बारह आने की सब्जी ली, उसका संसारी बोझा संसाररूपी घोड़े पर रखना होता है। उसे सिर पर लोगे तो भी घोड़े पर ही जाएगा। हमें सिर पर नहीं लेना है। ये अपने सिर पर लेते हैं इसीलिए अपना मुँह अरंडी पीए हुए जैसा, और घोड़े का मुँह भी अरंडी का तेल पीया हो, वैसा दिखता है। एक भाई थे। वे अपने टट्ट पर बैठकर जा रहे थे। भाई वज़नदार और टट्ट छोटा और कमज़ोर, इसलिए बेचारे की कमर भार से मुड़ी जा रही थी। ऐसे ही चले जा रहे थे, वहाँ रास्ते में एक खानसाहब मिले। उन्होंने भाई से कहा कि यह हरी घास है, यह आपके घोड़े के लिए ले जाओ न! तब भाई ललचाए कि मुफ्त में एक मन घास मिल रही है! लेकिन फिर लगा कि घोड़ा यह भार किस तरह उठाएगा? लेकिन वे कच्ची समझ के, इसलिए उन्होंने मन में नक्की किया कि घास मेरे खुद के सिर पर रखूगा तो थोड़े ही इसे उठाना पड़ेगा! वे तो घास का भार सिर पर रखकर टट्ट पर बैठकर जाने लगे! रास्ते में एक बनिये ने यह देखा और उसने उनसे कहा कि, 'भाई, भार तेरे सिर पर उठाया है, लेकिन वज़न तो घोड़े पर ही जा रहा है, इसलिए आप दोनों के मुँह अरंडी का तेल पीया हो, ऐसे दिख रहे हैं! संसार, वह तो घोड़े जैसा है। संसारी घोड़े पर बैठे हुए उस घुड़सवार जैसे हैं। घोड़े को दुर्बल समझकर घुड़सवार साँस रोककर बैठता है, उस घोड़े के सुख के लिए। लेकिन यह गणना गलत है। भार तो अंत में घोड़े पर ही आता है। उसी तरह आप सब अपना बोझा संसाररूपी घोड़े पर ही डालो। संसाररूपी घोड़े पर साँस रोककर मत बैठना, साँस रोककर मत जीना। यह तो जो खुद 'क्षेत्रज्ञ पुरुष' है, वह 'परक्षेत्र' में बैठा है। पूरा ही जगत् मूर्ख बना है। सिर्फ वीतराग ही समझ सके कि संसार में दिमाग़ पर बोझा किसलिए है? वे तो घोड़े पर ही जाते हैं। वीतराग तो बहुत पक्के (मोक्ष के लिए पक्के) गणितवाले, इसीलिए तो उन्हें रास आ गया और अंकगणितवाले भटक मरे!
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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