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________________ संसार स्वरूप : वैराग्य स्वरूप काम करवाते हैं। लेकिन जब वह चलना बंद कर दे, तब बूचड़खाने में छोड़ आते हैं! जब पिता जी कमाकर ला रहे हों या काम कर रहे हों तो पापा अच्छे लगते हैं, लेकिन यदि काम करना बंद कर दें तो घर में सब क्या कहेंगे कि ‘आप अब ऐसे इस तरफ बैठो। आप में अक्ल नहीं है ! ' ऐसा है यह जगत्! पूरा संसार दगा है ! यदि थोड़ा सा भी सगा होता तो ये ‘दादा' आपको बताते नहीं कि इतनी रिश्ता सच्ची है? लेकिन यह तो संपूर्ण से दगा ही है। कभी भी सगा नहीं हुआ । जीवित लट्टू चैन नहीं लेने देता। अरे, यहाँ सत्संग में आना हो, सिर्फ दर्शन करने आना हो, तो भी नहीं आने दें। ये आने देते हैं, वह तो बहुत अच्छा है। शुद्धात्मा ही सच्चा सगा २३ दादाश्री : ये रात को दो बजे आप उठते हो, तब सबसे पहले क्या लक्ष्य में आता है ? प्रश्नकर्ता : 'मैं शुद्धात्मा हूँ,' वह और फिर 'दादा' दिखते हैं। दादाश्री : 'हम' यह स्वरूप का ज्ञान देते हैं, उसके बाद आपको 'शुद्धात्मा' का लक्ष्य कितने समय तक रहता है दिन में? प्रश्नकर्ता : निरंतर रहता है, दादा । I दादाश्री : यह जो ‘शुद्धात्मा' का लक्ष्य रहता है, यही अपना है। यही हमारी खबर रखता है । दूसरा कोई रात में हमारी खबर नहीं रखता । हम पीने का पानी माँगें, तो भी कोई नहीं उठे। खुद लेने जाना पड़ता है हम पानी माँगें और वह सो रहा हो, तब तो उठ जाता है, लेकिन जाग रहा हो तो नहीं उठता। सारे हिसाब हमें एट - ए - टाइम दिखते ही रहते हैं। बिल्कुल दगा है यह संसार । कभी भी सगा नहीं होता ! दादाश्री : बहन, कितने बच्चे हैं आपके ? प्रश्नकर्ता : चार हैं । दादाश्री : तो पिछले जन्म के बच्चे अभी कहाँ हैं?
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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