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________________ आप्तवाणी-२ हो तो कोई छुड़वा दे, तभी छूट सकेगी। उसी तरह इस जगत् के फँसाव में से सिर्फ 'ज्ञानीपुरुष' ही छुड़वा सकते हैं, और कोई नहीं छुड़वा सकता। अपने आप तो खुद कभी भी नहीं छूट सकता, बल्कि अधिक फँसता जाएगा। बचपन में हमने बिल्ली का ऐसा सब निरीक्षण किया था। मैं खुद दही का बर्तन रखकर चुपचाप देखता रहता था। दही बिगड़े उसकी पड़ी ही नहीं थी। लेकिन देखने और जानने को तो मिलता था न! ऐसा प्रत्यक्ष फँसाव जानने के बावजूद भी वापस फँसे ऐसा मूर्ख कौन होगा? इस बिल्ली को कैसा है कि एक बार मुँह फँस चुका हो, फिर भी वापस दूध के बर्तन को देखे न, कि फिर भूल जाती है और छोड़ती नहीं है। फिर से फँसती है। फिर वह बहुत ही पछताती है। लेकिन फँस जाने के बाद क्या हो? एक बार वह फँस चुकी हो, उसके बाद उसे याद रहता होगा कि ऐसा फिर नहीं करना चाहिए? नहीं, उसे तो अगर दंड दिया हो तब भी भूल जाती है। ये इंसान भूल जाते हैं, तो फिर जानवर की क्या बिसात? यह देह अपनी नहीं हो सकती, और सब ऐसा कहते हैं, 'यह मेरा, यह मेरा'। अरे! यह देह ही तेरी नहीं है तो फिर और कोई तेरा कैसे हो सकता है? हमें कलकत्ता से आते हुए अच्छे आम दिखे हों, और वहाँ मजदूर नहीं मिलें, टोकरियाँ नहीं मिलें, फिर भी सँभालकर यहाँ तक ले आते हैं। और यहाँ लाने के बाद आम खाते हैं और खा लेने के बाद गुठलियाँ और छिलके फेंक देते हैं। अरे, इतनी मेहनत करने के बाद भी फेंक दिया? तो कहे कि, 'हाँ, मात्र रस की ही ज़रूरत थी। वैसे ही जब इन लोगों की भी सिर्फ गुठलियाँ और छिलके बचते हैं, रस नहीं रहता, तब संतानें भी लात मारती है! हमारे वहाँ पड़ोस में एक अँधी बुढ़िया और उनका बेटा रहता था। बुढ़िया सारा दिन घर सँभालती और काम किया करती थी। उस व्यक्ति के घर एक दिन उसके साहब आए। ये घर के साहब और वे ऑफिस के साहब! दोनों घर आए। तो उस भाई को लगा कि 'मेरी अँधी माँ को मेरे साहब देखेंगे तो मेरी आबरू चली जाएगी'। उसने साहब के सामने खुद
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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