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________________ ४१२ आप्तवाणी-२ नहीं है उसका इस दुनिया में कोई नाम देनेवाला नहीं है! और नाम देगा तो पुद्गल का देगा, लेकिन आत्मा को कौन छू सकता है? ये लोग तो पुद्गल के व्यापारी हैं, वे पुद्गल का व्यापार भले ही करें, पौद्गलिक व्यापार है न? किसी का पुद्गल ले जाएँगे बहुत हुआ तो, लेकिन यहाँ मालिकी नहीं थी उनका ले लेते हैं न! जिसे मोक्ष की इच्छा होती है, उसे पुद्गल की मालिकी नहीं रहती! पुद्गल की मालिकी है, उसे मोक्ष की इच्छा नहीं होती। अमूर्त के दर्शन, कल्याणकारी कविराज ने लिखा है कि, 'मूर्ति अमूर्तना दर्शन पामे ज्यां मंदिरना घटनाद वागी गया छ।' मूर्ति 'अमूर्त' के दर्शन प्राप्त करे, उसके बाद मोक्ष में जाने के घंटनाद बजते हैं। अमूर्त के दर्शन किसी भी काल में हुए नहीं, यदि हुए होते तो मोक्ष के घंटनाद बज गए होते सभी ‘मंदिरों' में! यह बात आपको समझ में आई कि 'मूर्ति यदि अमूर्त के दर्शन करे तो कल्याण हो जाता है?' मनुष्य (रूपी) मूरत होगी, तभी तो हमें अमूर्त के दर्शन होंगे न! जब मूर्ति अमूर्त के दर्शन प्राप्त करे, तब समझो कि मंदिर के घंटनाद पूरे हो गए, वहाँ पर काम पूरा हो गया। 'ज्ञानीपुरुष' तो जड़ और चेतन का ऐसे विभाजन करके सारा तांबा अलग कर देते हैं, उनके हाथ में आए तो तुरंत ही कह देते हैं कि, 'यह शुद्ध है और यह मैला है।' यहाँ तो थोडा भी मैल हो तो नहीं चलेगा, मोक्ष के लिए तो यदि थोडा भी मैल हो तो काम का नहीं है, वह सोना नहीं कहलाएगा। भगवान ने कहा है कि, 'दो प्रतिशत मैल हो तब भी वह सोना नहीं है, हमें तो शुद्ध सोना चाहिए। शुद्ध उपयोगवाला सोना! यहाँ और कुछ भी नहीं चलेगा, गड़बड़-वड़बड़ चलेगी ही नहीं!' सोने में दो बाल जितना फर्क हो तो? 'तो भी नहीं, वह फर्क-वर्क, मिलावटी सब जाओ यहाँ से चौकसी (सोने का पारखी) के पास।' यहाँ तो वीतरागों का काम, शुद्ध
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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