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________________ ३९८ आप्तवाणी-२ वहीं संसार रोग को बढ़ाया करता है और जानने का कैफ़ लेकर घूमता है ! यदि जान जाए तो संसार रोग कम हो जाएगा, प्रकाश हो जाएगा और ठोकर नहीं लगेगी। यदि जाना नहीं है तो फिर किसका कैफ़ लेकर घूम रहा है? वेदशास्त्र तो साधन स्वरूप एक व्यक्ति कहने लगा कि, 'मैंने चार वेद पढ़ लिए हैं और मुझे तो चारों वेद धारण हो गए हैं!' तब मैंने उसे कहा, 'चार वेद इटसेल्फ क्या कहते हैं? दिस इज नॉट देट। तू जिस आत्मा को ढूँढ रहा है, वह इस वेद में नहीं समा सकता, इसमें नहीं है, इसलिए गो टु ज्ञानी।' हम कहते हैं कि, 'हमारे पास आ जा तो घंटेभर में ही तुझे दिस इज़ देट बता दूंगा!' वेद तो मार्गदर्शन देते हैं, वे तो कहते हैं कि, 'इस जगह पर गिरगाँव है।' लेकिन उस मार्गदर्शन से आत्मा नहीं मिलता, उसके लिए तो 'ज्ञानीपुरुष' की ज़रूरत पड़ेगी। डॉक्टर को पूछे बिना प्रिस्क्रिीप्शन नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि उसे मरने का भय है। और जहाँ पर अनंत जन्मों के मरण का भय है, वहाँ पर खुद दवाई बनाता है और फिर किसी 'ज्ञानीपुरुष' से पूछे बिना पी लेता है। शास्त्र तो शस्त्र हैं, उसका उपयोग करना नहीं आएगा तो मर जाएगा! जैन मत और वेदांत मत दोनों एक कहाँ होते? 'आत्मज्ञान' के समक्ष। 'आत्मज्ञान' होने तक दोनों के विचार अलग पड़ते हैं, लेकिन 'आत्मज्ञान' के समक्ष दोनों ही सहमत हो जाते हैं, सभी एक हो जाते हैं! ब्रह्मनिष्ठ तो ज्ञानी ही बनाते हैं 'खुद' परमात्मा है, लेकिन जब तक वह पद प्राप्त नहीं हो जाता, तब तक 'हम वैष्णव हैं और हम जैन हैं,' ऐसा करते हैं। और फिर वैष्णव हृदय में कृष्ण को धारण करते हैं, लेकिन जब तक मूल वस्तु प्राप्त नहीं हो जाती, तब तक वह धारणा कहलाती है। 'मूल वस्तु,' खुद का स्वरूप, वह प्राप्त हो जाए, तो वह ब्रह्मसंबंध है। ब्रह्मसंबंध किसे कहते हैं? लगनी लग जाए, फिर कभी भी भूले नहीं, वह ब्रह्मसंबंध है, यानी आत्मा के
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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