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________________ जगत् स्वरूप दादाश्री : तो फिर तीन ही क्यों आए? पाँच क्यों नहीं आए? प्रश्नकर्ता : तीन गुण हैं, इसलिए तीन हैं। दादाश्री : ये बह्मा, विष्णु और महेश नाम का कोई है ही नहीं। ये तो तीन गुणों को नाम दिए हैं। उन तीन गुणों की बात अच्छी तरह समझाने गए लेकिन उसका दुरुपयोग हुआ और मूर्तियाँ बनाईं ! वे क्या कहना चाहते थे कि प्रकृति के इन तीन गुणों को निकालकर निर्मल हो जाएगा, तब तू परमात्मा बन जाएगा! प्रश्नकर्ता : इन तीन गुणों को निकालकर? दादाश्री : हाँ, इन बह्मा, विष्णु और महेश के रूपक-गुणों को निकालकर। सुख तो आपके पास ही है, लेकिन क्यों नहीं मिल पाता? तो इसलिए कि, 'अंतराय हैं'। तो वे किसने खड़े किए? भगवान ने खड़े किए? नहीं, तेरे ही खुद के डाले हुए हैं। अंतराय ऐसी चीज़ है कि प्राप्त हो जाए, फिर भी फेंक देता है। नहीं तो आप खुद ही परमात्मा हो। लेकिन आपके खुद के ही अंतराय हैं, उसमें किसी का दख़ल नहीं है। यह तो अपना ही खड़ा किया हुआ तूफ़ान है। यदि कोई यह सब खड़ा करनेवाला होता तब तो ये लोग कम नहीं हैं, उसे पकड़कर उसका कब का ही साग बना डाला होता! यमराज नहीं, नियमराज कितने ही लोग यमराजा से डर जाते हैं। उन लोगों ने यमराजा का चित्रण भी कैसा किया? बड़े-बड़े दाँत और सींगवाले और भैंसे के ऊपर बैठे हुए! फिर डरेंगे नहीं तो और क्या होगा? कुत्ता रोए तो कहते हैं कि यमराज आए है। अरे, यमराज नाम का कोई जानवर है ही नहीं। यमराज, वह तो नियमराज है! नियमानुसार, पद्धति के अनुसार ही है यह सब। नियम के अनुसार ही मृत्यु आती है। अब यह नियमराज है, ऐसा हम कहें, तो फिर आपको किसी से घबराना बाकी रहा?
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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