SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 413
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७६ आप्तवाणी-२ एक व्यक्ति मुझे कहता है कि, 'कृष्ण भगवान तो माँ के पेट से नहीं जन्मे थे न?' मैंने उससे कहा, 'तो क्या कृष्ण ऊपर आकाश में से टपके थे? इन सभी देहधारियों को माँ के पेट से जन्म लेना ही पड़ता है। कृष्ण तो देवकी जी के पेट से जन्मे थे।' कृष्ण भगवान ने नियाणां (अपना सारा पुण्य लगाकर किसी एक चीज़ की कामना करना) किया था। नियाणां मतलब क्या? अपनी चीज़ के बदले में किसी और चीज़ की इच्छा करना, चीज़ के सामने चीज़ की इच्छा करना। खुद के पुण्यों की सारी ही जमापूँजी किसी एक चीज़ प्राप्त करने में खर्च कर देना, उसे नियाणां कहते हैं। कृष्ण भगवान पिछले जन्म में वणिक थे, तब उन्हें जहाँ-तहाँ से तिरस्कार ही मिला था, फिर साधु बने थे। उन्होंने तप-त्याग का ज़बरदस्त आचार लिया, उसके बदले में क्या निश्चित किया? मोक्ष की इच्छा या दूसरी इच्छा? उनकी ऐसी इच्छा थी कि पूरा जगत् मुझे पूजे । तो उनका पुण्य इस पूजे जाने के नियाणे में खर्च हो गया, तो आज उनके नियाणे के पाँच हजार साल पूरे हो रहे हैं। पुष्टिमार्ग क्या है? वल्लभाचार्य ने पुष्टिमार्ग निकाला। पाँच सौ सालों पहले जब मुसलमानों का बहुत कहर था, अपने यहाँ की स्त्रियाँ मंदिर में या बाहर कहीं भी नहीं निकल सकती थीं, हिन्दू धर्म खत्म होने की कगार पर आ गया था, तब वल्लभाचार्य ने काल के अनुरूप धर्म को पुष्टि दी, तो घर बैठे भक्ति की जा सके ऐसा मार्ग दिया, लेकिन वह धर्म तो उस काल के लिए ही था इसलए पाँच सौ साल तक ही रहेगा वे खुद ही ऐसा कहकर गए, और आज वे पूरे हो रहे हैं। अब आत्मधर्म प्रकाश में आएगा। कविराज ने गाया है कि, 'मुरलीना पडघे झूमी जमुना बोली, श्री कृष्णना प्रकाशक आवी गया छ।' कृष्ण तो ग़ज़ब के पुरुष हो चुके हैं, वासुदेव थे और अगली चौबीसी में तीर्थंकर बनेंगे। कृष्ण तो नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy