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________________ योगेश्वर श्री कृष्ण ३७३ मेरा सच्चा भक्त नहीं है। मैं जो कहता हूँ, मेरी उस आज्ञा का एक दिन, अरे एक घंटा भी पालन नहीं करते।' श्री कृष्ण की आज्ञा कृष्ण भगवान कहते हैं : ‘जीव तुं शीद ने शोचना करे, कृष्ण ने करवं होय ते करे।' जबकि ये वैष्णव क्या कहते हैं? वैष्णव कहते हैं कि, 'कृष्ण भगवान तो ऐसा कहते हैं, लेकिन चिंता किए बगैर थोड़े ही अपना काम चलेगा? चिंता तो करनी ही पड़ेगी न?' लो, ये बड़े चलानेवाले निकल पड़े हैं! कृष्ण तो कितना कुछ कह गए हैं कि, 'प्राप्त को भोग, अप्राप्त की चिंता मत करना।' अभी यह भोजन की थाली सामने आई है, वह प्राप्त संयोग है, तब उसे भोगने के बजाय सेठ गए होते हैं कारखाने में और यहाँ पर मात्र शरीर ही भोजन कर रहा होता है! अब कृष्ण भी इसका क्या करें? कृष्ण कहते हैं कि, 'एक तरफ मुझे झूले में बैठाते हैं और दूसरी तरफ मेरी जीभ पर पैर रखते हैं ये सभी लोग! मेरे एक भी शब्द का पालन नहीं करते।' आपको क्या लगता है? मेरी बात ठीक है न? आप ही कहो कि चिंता करते हो या नहीं करते? प्रश्नकर्ता : चिंता तो रात-दिन करते हैं, लेकिन हमें चिंता नहीं करनी है फिर भी हो जाती है, तो फिर क्या उपाय करना चाहिए? दादाश्री : इसमें कृष्ण की आज्ञा का उल्लंघन होता है, लेकिन साथ-साथ इसका इलाज भी है। आपको रोज़ सुबह पाँच बार कृष्ण भगवान की फोटो के सामने दोनों हाथ जोड़कर कहना चाहिए कि, 'हे भगवान, आपने कहा है कि तू एक भी चिंता मत करना। क्योंकि करना-करवाना सब आपके हाथ में है, फिर भी मुझसे चिंता हो जाती है तो क्या करूँ? मेरी तो दृढ़ इच्छा है कि एक भी चिंता नहीं करूँ। इसलिए हे भगवान ऐसी कुछ कृपा कीजिए, ऐसी शक्ति दीजिए कि फिर से चिंता नहीं हो।' इसके बावजूद यदि फिर से चिंता हो तो फिर से भगवान से ऐसे विनती करना। ऐसे करते ही जाओ, फिर कोई भी चिंता नहीं होगी, ऐसे हम लोगों
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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