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________________ आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान ३५९ नहीं पाते।' ऐसे जो आप कहते हो, उसे भगवान क्या कहते हैं कि, 'यह तो हमारी मज़ाक हो गई।' यह पोइजन की बोतल और दूसरी बोतल पासपास रखी हो, लेकिन यदि इसमें पोइजन है ऐसा जाना नहीं हो, समझा नहीं हो तो पोइज़न की बोतल ले लेता है। जानने के बावजूद भी हो नहीं पाता, ये तो गलत बहाने हैं, अज्ञान को ही ज्ञान कहते हैं। यदि जान जाए तब तो फिर कोई कुँए में गिरे ही नहीं न। यह तो जानते हैं फिर भी नहीं करते, वह ज्ञान ही अज्ञान है! जाना उसका फल विरति है। कोई बच्चा पूछे कि, 'ज़हर क्या है?' तो उसे कहें कि, "उससे व्यक्ति मर जाता है।' तो फिर बच्चा वापस पूछता है कि, 'मर जाना मतलब क्या?' तब हम उसे समझाएँ कि, 'ये पड़ोस में चाचा मर गए थे न, तो ज़हर से ऐसा होता है।' तब बच्चे को समझ में आता है। वह समझता है कि यह ज़हर है, इसे नहीं पीना चाहिए, इसके बाद जहर के प्रति उसे विरति रहेगी। जाना उसका फल ही विरति होता है। विरति मतलब रुक जाना। नकद प्रतिक्रमण से ही हल एक बहन कहती हैं कि, 'हमारे वहाँ तो प्रतिक्रमण में पीछे से कोई कोहनियाँ मारता है। आपके यहाँ ऐसा नहीं होता होगा, क्यों?' तब हमने उसे कहा कि, 'नहीं, यहाँ ऐसा नहीं होता। यहाँ तो सच्चे प्रतिक्रमण, भगवान महावीर जो कहना चाहते थे, वैसे प्रतिक्रमण होते हैं।' अन्य लोग तो मागधी भाषा में गाते हैं। वह कैसा है, आपको समझाता हूँ। यहाँ फ्रेंच व्यक्ति बैठा हो और मैं गजराती में गाता रहँ तो वह हँसेगा ज़रूर पर उसमें से एक भी अक्षर वह समझेगा नहीं। महावीर ऐसा नहीं कहना चाहते थे। उन्होंने कहा तो ठीक था, लेकिन सभी लोग अपनी-अपनी भाषा में ले गए! फिर क्या हो? उन्होंने तो कहा कि, 'सही तरीके से आप अपनी भाषा में समझो।' यह तो क्या कहता है कि, '५०१' का साबुन लाकर डाल, लेकिन वह तो खाली गाएगा ही। कोई साबुन लाकर कपड़े धोएगा नहीं, और ऊपर से कहेगा कि, 'प्रतिक्रमण' किया। फिर उठकर बाहर निकलकर बेकार की गप्पबाज़ी करेगा! प्रतिक्रमण तो नक़द होना चाहिए। अतिक्रमण हुआ कि तुरंत ही प्रतिक्रमण! केश! देह की क्रिया नक़द होती है। जैसे ब्रश
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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