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________________ अणुव्रत-महाव्रत ३५३ अपरिग्रही हैं। एक भी परिग्रह उनके लक्ष्य में नहीं रहता है। वह खो गया है या साबुत है, ऐसा भी उनके लक्ष्य में नहीं रहता, और इन्हें तो चार ही परिग्रह होते हैं, दो कपडे होते हैं, और भिक्षा के लिए एक लोटा होता है, एक माला होती है और एक चिमटा होता है। उसमें से लोटा यदि टूट जाए तो ग़ज़ब हो जाए! या फिर वह उसकी जगह पर नहीं हो तो कहेंगे 'लोटा कहाँ गया?'। यानी कि इतना परिग्रह है, वह उसके लक्ष्य में रहता है। अब परिग्रह इतना ही है, फिर भी लक्ष्य में है, और 'हमें' परिग्रह है फिर भी लक्ष्य में नहीं है। इसलिए 'हमें' अपरिग्रही कहा है। अपने महात्माओं को शुद्धात्मा लक्ष्य में रहता है, इसलिए परिग्रह लेते हैं, देते हैं, फिर भी वे अपरिग्रही कहलाते हैं, क्योंकि परिग्रह का लक्ष्य नहीं है, लक्ष्य शुद्धात्मा का है ! या तो स्वरूप का लक्ष्य रहता है या फिर संसार का लक्ष्य रहता है, दोनों में से एक ही लक्ष्य रहता है, वहाँ रहा तो यहाँ नहीं है, और यहाँ है तो वहाँ नहीं है। यह तो विज्ञान है! संसार में कुछ लोग स्थूल चोरी नहीं करते, इसे भगवान क्या कहते हैं? इसे त्याग नहीं कहते। अतः ऐसा कहना कि उसने स्थूल चोरी का त्याग किया है, वह गलत बात है। भगवान कहते हैं, 'वह तो व्रत है तेरा।' बरते वह व्रत। जिसमें मेरापन नहीं है और 'मैं त्याग कर रहा हूँ।' ऐसा भान नहीं है और सहज ही बरतता है, वह व्रत कहलाता है। इन जैनों को भगवान ने अणुव्रत क्यों कहा है? तब कहते हैं कि, 'दूसरे लोगों को, फॉरेनवालों में भी अणुव्रत होता है और यहाँ अन्य धर्मों में भी अणुव्रत होता है, लेकिन उन पर वीतरागों की मुहर नहीं लगी है!' 'यह व्रत वीतरागों का बताया हुआ है।' इस तरह भान में आने के बाद, वह व्रत उन्हें बरतता है इसलिए यह अणुव्रत कहलाता है। और यह वीतरागों को मान्य है। वास्तव में वह भी चोरी नहीं करता, लेकिन वह सहजभाव से चोरी नहीं करता है। यहाँ तो ऐसा सहजभाव से बरतता है कि 'मुझसे चोरी नहीं हो।' फिर भी अणुव्रत क्यों कहते हैं? यह चोरी नहीं करता, लेकिन मन से बहुत चोरियाँ कर लेता है, इसलिए अणुव्रत कहा है और महाव्रत किसे कहते हैं? मन-वचन-काया तीनों से ही चोरी नहीं हो, उसे महाव्रत कहते
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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