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________________ आप्तवाणी-२ जाए तो क्या दशा होगी? स्टेशन आया, लेकिन कौन सा आया? तब कहे, 'बैंगलोर ।' 'तो अहमदाबाद कब आएगा?' तब कहे कि, 'अहमदाबाद इस तरफ नहीं है, उस तरफ है।' अतः इस प्रकार से मोक्षमार्ग में उल्टे जा रहे हैं। मोक्षमार्ग ऐसा नहीं है, मोक्षमार्ग में तो कष्ट ही नहीं होते । जहाँ कष्ट है, वहाँ मोक्ष नहीं है, जहाँ मोक्ष है वहाँ कष्ट नहीं है ! कष्ट को तो भगवान ने हठाग्रह कहा है। अब फिर आजकल के ये मोक्षमार्ग में जानेवाले कहते क्या हैं कि, 'कष्ट तो भगवान ने भी उठाए !' अरे, भगवान को क्यों बदनाम करते हो? आप अपना जो कर रहे हो, वह करते रहो, कष्ट ! उसमें भगवान को क्यों बदमान कर रहे हो ? भगवान क्या ऐसे होंगे? ये 'दादा' बिल्कुल कष्ट नहीं उठाते तो महावीर भगवान किसलिए कष्ट उठाते ? ज्ञानियों को कष्ट होता ही नहीं, कहते हैं कि, 'भगवान ने त्याग किया था।' अरे, भगवान ने तो तीस साल की उम्र में बेटी का जन्म होने के बाद त्याग किया था, और वह भी कहीं पत्नी और बच्चों का तिरस्कार करके नहीं किया था । बड़े भाई के पास जब भगवान आज्ञा लेने गए, तब भाई ने ऐसा कहा, 'दो साल बाद में लेना ।' भगवान ने दो साल बाद त्याग लिया और उसमें भी पत्नी की राजीखुशी- सम्मति से लिया था । भगवान ने त्याग किया नहीं था, उन्हें त्याग बरता था क्योंकि भगवान महाव्रत में थे । महाव्रत अर्थात् जो बरते वह। त्याग किया हो तो वह तो व्रत भी नहीं माना जाता ! त्याग करना और बरतना, दोनों अलग हैं। जिसे त्याग बरता हुआ होता है, उसे खुद को यह याद भी नहीं होता कि किस चीज़ का त्याग किया है! ३५० त्याग करनेवाले त्यागी तो सभी गिनकर बता देते हैं, 'तीन बच्चे, पत्नी, बड़े-बड़े आलीशान घर, बंगले, बेहिसाब जायदाद छोड़कर आए हैं, ' ऐसा सब उन्हें याद रहता है, भूलते नहीं हैं । और त्याग बरता किसे कहा जाता है? सहजरूप से भूल जाते हैं ! उसे भगवान ने व्रत कहा है, त्याग नहीं कहा। इसलिए अणुव्रत और महाव्रत, उसमें अणुव्रत जैनों के लिए कहा है, ‘जितना आपको सहज स्वभाव से बरतता है उतना अणुव्रत में आ चुका है।' त्याग का तो कैफ़ चढ़ता है और याद रहा करता है, 'मैंने इतना त्याग किया, ऐसे त्याग किया, वैसे त्याग किया।' बात को इस तरह समझेंगे तो हल आएगा । मुझे कुछ याद ही नहीं रहता, रुपये तो मुझे याद
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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