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________________ अणुव्रत-महाव्रत दादाश्री : आप कौन हो? प्रश्नकर्ता : जैन हैं। दादाश्री : जैन हो तो जैनों में तो कुछ जानना आपको बाकी ही नहीं रहा न? प्रश्नकर्ता : जब तक देह है, तब तक तो कुछ न कुछ जानना ही पड़ेगा न? दादाश्री : इस मोक्षमार्ग में तो आपके कितने मील पार हो चुके हैं और कितने बाकी रहे, वह तो आपके लक्ष्य में होगा न? कुछ दूर तक तो चले ही होंगे न, तो कुछ मील तो कम हुए होंगे न? प्रश्नकर्ता : कम हुए होंगे न। दादाश्री : कितने मील कम हो गए होंगे? प्रश्नकर्ता : वह कैसे कह सकता हूँ? मैं अज्ञानी हूँ, मुझे कैसे पता चलेगा? दादाश्री : जितने महाव्रत आए उतने मील पार किए! महाव्रत या फिर अणुव्रत होता है। यदि महाव्रत नहीं हो और अणुव्रत हो तो उतने मील पार किए। सच्चे दिल से अणुव्रत में हो तो उतने मील कम हुए, क्योंकि चोरी करने का अणुव्रत होता है तब एक तरफ लोभ भी होता है, यानी कि ज़रूरत भी है और दूसरी तरफ अणुव्रत का पालन करता है यानी कि अणुव्रत का पालन करते-करते लोभ का भी ध्यान रखा न! इसलिए जितने अणुव्रत आए हैं उतने मील पार किए।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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