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________________ मन ३१३ यह जो भीतर शोर मचाता है, वह मन बोलता है, विचार बोलते हैं और वे भी खुद ने ही उन्हें इकट्ठे किए हैं। कितने ही प्रकार के विचार नहीं आते हैं क्योंकि वह माल इकट्ठा ही नहीं किया, इसलिए। जैसा माल भरा है वैसे ही विचार आएँगे। इसलिए जितने आपने इकट्ठे किए हैं, उतने ही शोर मचाएँगे। जितने इकट्ठे किए थे, वे ही बसायें हैं और बसायें हैं तो शोर मचाएँगे ही न? यदि विचार बिगड़ा तो दाग़ पड़ेगा, इसलिए विचार मत बिगाड़ना, यह समझना है। अपने सत्संग में तो खास ध्यान रखना है कि विचार नहीं बिगड़ें। विचार बिगड़ने से सबकुछ बिगड़ जाता है। विचार आया कि मैं गिर जाऊँगा तो गिरा। इसलिए, जैसे ही विचार आएँ कि तुरंत ही प्रतिक्रमण करो, आत्मस्वरूप बन जाओ। अपना धर्म क्या कहता है कि असुविधा में सुविधा देखो। रात को मुझे विचार आया कि, 'यह चादर मैली है,' लेकिन फिर एडजस्टमेन्ट कर लिया तो इतनी अच्छी लगती है कि पूछो मत। पँचेन्द्रिय ज्ञान असुविधा दिखाता है और आत्मा सुविधा दिखाता है। इसलिए आत्मा में रहो। कोई मित्र बीमार हो तो उसके घर पर कहना पड़ता है कि, 'इसका इलाज करवाइए।' अंदर ऐसे विचार भी आते हैं कि यह बच जाएगा, ऐसा लगता नहीं है, ऐसे उल्टे विचार ज्यादा कमजोर बना देते हैं। ऐसे विचार काम के ही नहीं होते। ऐसे विचार ही संसार हैं, वे खुद ही विचार हैं, उनका स्वभाव ही चंचल है, लेकिन आप को उसमें चंचल नहीं हो जाना चाहिए। वे तो आते रहेंगे, आप को तो, जब वे आएँ तब देखते रहना है और जानते रहना है। उन्हें जाना, इसका मतलब शुद्धात्मा हाज़िर ही है। उन्हें तो यह जानना है कि पहले चंदूलाल गए, फिर चतुरलाल गए। प्रश्नकर्ता : विचार बहुत आ गए, लेकिन बाद में पता चलता है कि ये तो विचार आ गए। तब क्या उसे तन्मयाकार होना कहा जाएगा? दादाश्री : विचारों में बह नहीं गए तो उनसे भिन्न ही हैं। अगर इन विचारों को नहीं पकड़ा तो आत्मा, आत्मा ही रहा। कई बार ऐसा
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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